Wednesday, June 30, 2010

वाह रे ननकी राम...जवान मर रहे हर बार...

नक्सलवाद का तोड़ धुड़ना तो दूर कि बात है हम तो सिर्फ हर हमले के बाद अपने जवानो के शव गिनते रह जाते है... जी है जब से नक्सलवादियों ने अपनी बन्दुक उठाई है एसा बहुत कम ही हुआ है कि हमें नक्सालियों के शब् मिले हो.... और मिल भी कैसे सकते है क्योंकि वो तो मरते भी है और अपने साथियों के शव ले भी जाते है... एसे में ये क्याश लगाया जाना कि नाक्साली मारे गए बहुत बड़ी भूल है... जी है ये बही बात है जिससे आज तक हमारी सरकारे खुद को दिलाशा देती आ रही है... महज तीन महीनो में हमने अपने १५० से ज्यादा जवान खो दिए... और हमें हाथ लगा क्या सिर्फ और सिर्फ नाकामयाबी... पर इस असफलता से आज तक हमारी सरकारों ने कोई सबक नहीं लिया और ये तो इस बात कि गारंटी भी नहीं लेते कि अब नाक्साली हमले में जवान नहीं मारे जायेंगे... हेरानी कि बात तो ये है कि कल जब नाक्साली हमला हुआ तो हमारे देश के गृहमंत्री पूजा में व्यस्त थे... वाह रे ननकी राम जवान मर रहे हर बार॥
एक के बाद एक नक्सालियों का कहर इस राज्य में टूट रहा है... हर चालीसवे दिन एक बड़ी घटना से पूरा देश देहल जाता है और उस घटना के बाद राज्य के मुखिया बैठक बुलाते है... सुबह वाही सिलसिला... जवानो कि छाती पर फूल रख दिया जाते है नमन कर लिया जाता है... गार्ड ऑफ हौनौर दिया जाता है... उसके बाद मंत्री अपने काम में लग जाते है... अरे भाई कोई ये तो बताओ कि हम हर बार जब इतना कर सकते है तो क्या एक बार शांत दिमाक से ये नहीं सोच सकते कि अब नक्सालियों को ख़त्म करना है... अब आर पार कि लड़ाई लड़नी है... इन नेताओ में सिर्फ सियासी रोटिया सकने कि कूबत है इससे ज्यादा कुछ नहीं... चलिए हम आपको राज्य के गृहमंत्री ननकी राम कंवर साहब कि बात बताते है ... कल शाम ७ बजे तक इस बात कि पुष्टि लगभग हो चुकी थी कि हमारे काफी संखिया में जवान मारे गए है... जब मीडिया प्रतिक्रिया लेने साहब के दरवाजे पर पंहुचा तो पता चला कि ननकी राम कंवर पूजा में धियान मग्न है... आपको ये भी बताये कि मुखमंत्री रमन सिंह के निवास पर उसी समय बैठक थी जिसमे इन जनाव को शामिल होना ही था... पर कंहा ये तो थे भक्ति में लिप्त... भक्ति भी एसी कि २६ जवान शहीद हो गए और ननकी राम... राम राम करने में लगे हुए थे... पर जब मीडिया ने इस खबर को उझला तो सिर्फ लाल बत्ती लगी सिंगेल गाडी में पहुचे सीधे सीएम निवास... मुस्किल से १० मिनिट के बाद निकल आये... ये तो दशा है उस राज्य कि जन्हा नाक्साली तांडव कर रहे है और हमारी सरकार के सबसे बड़े पोस्ट पर कविज गृहमंत्री पूजा कर रहे थे... भला क्यों कैसे उन जवानो का मनोबल ऊपर करे...
इस बिडम्बना कहे या फिर भूल समझ नहीं आता... पर आज जरुरत आ गई है कि जबाब देना चाहिए... लगता ही कि सरकार इस बात का इन्तेजार कर रही है कि जब दुश्मन दरबाजे पर आएगा तब हथियार उठाएंगे... बड़ा दुःख होता है कि न तो राज्य सरकार कुछ कर रही है न केंद्र कुछ कर रहा है... सब मीडिया में बयां देने हर घटना के बाद चले आते है मुह उठाकर... सबाल ये है कि आखिर कर रुकेगी ये नाक्साली वारदाते॥ आखिर कब तक माटी लाल होती रहेगी... कब तक आदिवासियों कि दुहाई देकर नक्सालियों से सामना करने से कतराएगी सरकार... क्यों नहीं उतरती सेना... अब बक्त आ गया है... कि कमान सेना के हाथ में देकर इस समस्या का समाधान निकाल लिया जाये... पर हमारे हुक्मरान का कहना है कि अभी बक्त नहीं आया है... अरे अगर अभी बक्त नहीं आया है तो क्या सोकड़ो लाशो को देखने कि इक्छा है कि... तब जाकर कुछ कार्रवाई होगी... अरे ये लोग नहीं सुधरने बाले इन्हें तब तक समझ नहीं आएगा जब तक कोई इन सबसे बड़ी वारदात नहीं होगी... सबाल ये है कि आखिर चुक कहा हो रही है... क्यों जवान नक्सालियों के बिछाए जाल में फँस जाते है... क्या हमारा खुफिया तंत्र पूरी तरह से नस्ट हो चूका है... इस बात को रायपुर सीआरपीएफ आईजी ने स्वीकार किया है... अगर एसा है तो क्यों जवानो को मौत के मुह में धकेला जा रहा है... लगता है कि सरकार का न तो दिल काम कर रहा है न दिमाक....
इन्हें हाथो में चुडिया पहिनकर बैठ जाना चाहिए... पर इनसे ये भी तो नहीं होगा... आज हमें आवाज उठानी होगी और इन सोये लोगो को जगाना होगा... अब ये जनता का दयित्ब हो गया है...

Saturday, June 26, 2010

एक खोइस..... मेरी भी..

आओ बैठो पास मेरे तुम्हे देखना है............
तुमसे बाते करना है जी भर के मिलना है...

पहली मुलाकात में तुमसे मोहबत हो गई...
तुम चलो साथ मेरे तुमसे कहना है.............

क्यों मिले हो मुझे तुम क्या ये तोफा खुदा का है...
सुक्र है तेरा खुदा ये उससे कहना है......................

जब भी आँखे बंद हो तू नजर आये मुझे.......
अब इस हकीकत को मुझे सच जो करना है...

कहते है उम्मीद पे दुनिया चलती है..........
तुमको पाना खोइस तुम बिन न रहना है...

Sunday, June 13, 2010

कुछ मेरी...

१.॥ तेरी जुबान से मेरा नाम उसने ही मिटाया होगा
पता है वो कोई गैर नहीं मेरा अपना होगा...
जो जनता है मैं तुझसे मोह्बात करता हूँ...
सायद उसी दोस्त ने तेरे दिल में अपना घर बनाया होगा...

२.॥ यूँ तो लोग कहते है प्यार हर इंसान को होता है...
दिल हर किसी का धडकता है...
मेरे मोहल्ले के एक दादा को भी इश्क हो गया...
क्योंकि किसी ने कहा है कि दिल बच्चा होता है...

३.॥ तोड़ दो मंदिर तोड़ दो मस्जिद और बना दो मधुशाला...
मुस्लिम बैठ कर पिये मधुशाला में हिन्दू छलकाए पियाले पर पियाला...
सरत है मेरी न होगा दंगा न होगा पंगा अमन चैन कायम होगा...
ईद मानेगी हिन्दू के घर दिवाली दिया मुस्लिम घर होगा...
पर कौन सुनता मेरी सब लगे है अपना उल्लू सीधा करने...
जन्हा से आये जितना भी आये लगे है सब जेबे भरने...
कुर्सी के पुजारी ने अब धर्म का दमन थम लिया...
कोमी भाषण देकर सिम्पेथी वोट हथिया लिया...
गलती उनकी नहीं वो तो खरीदने खड़े है...
हम है जो बिकने खड़े है...
अब भी बक्त है सभाल जाओ...





Saturday, June 12, 2010

त्रासदी पर त्रासदी..........

त्रासदी पर त्रासदी लगता है भोपालवासियों के लिए येही देखना और सुनना बचा हुआ था... २५ साल पहले एक गोरे ने २५ हज़ार लोगो को मौत के आगोश में दफ़न कर दिया... और २५ सालों बाद जब फिर से भोपाल गैस कांड कि किताब खुलनी शुरू हुई तो देश इस कांड पर दूसरी त्रासदी से बाकिफ हो रहा है कि किस तरफ हमारे देश के कुछ लालची और गद्दार नेताओं ने किस तरफ इस गुनाह के असली मुजरिम को देश से बाहर निकलने में अहम् रोल अदा किया... अब पूरा देश इन नेताओ से जबाब मांग रहा पर न जाने ये किस मियाँद में दुबके बैठे हुए है... जिनमे सबसे ऊपर नाम है कांग्रेस के वरिष्ट नेता और वर्तमान में मध्यप्रदेश के मुखिया अर्जुन सिंह का... और इसमें राजीव गाँधी का नाम भी दावी जुबान में सबूतों के आधार पर लिया जा रहा है...
आज से ठीक २५ साल ६ महीने और २६ दिनों पहले अब तक कि सबसे बड़ी ओदियोगिक त्रासदियों में गिनी जाने वाली भोपाल गैस त्रासदी के बारे में अगर बन्हा के लोगो से जिक्र करने बैठ जाये तो लोगो के आंसू आज भी झर झर बहने लगते है... पर वो लोग क्या जाने जिन्हें सिर्फ और सिर्फ इतना पता था कि किस तरह इस कांड के मुख्य आरोपी voren andorson को जल्द से जल्द देश से बाहर निकलना है... २ दिसम्बर १९८४ को हुए इस कांड के एक दिन बाद दुरसे दिन गैर जमानती धारा लगने के बाद भी andorson को जमानत मिल गई और उसे भोपाल से निकलने के लिए लाल बत्ती वाली ambesdor कार जिसे खुद भोपाल के तात्कालिक एसपी स्वराज्पुरी चला रहे थे और जिसमे कलेक्टर भोपाल मोती सिंह बैठे हुए थे... कार सीधे एअरपोर्ट पहुची और बहा खड़े विमान से voren andorson को दिल्ली भेज दिया गया... और वो बन्हा से अपने बतन चला गया... २५ हज़ार मौतों के कसुरबार को सरकारी मेहमान नवाजी के साथ इस तरह देश से बाहर सुरक्षित भगा देना समझ से परे है... यंहा पर सवाल तात्कालिक केंद्र सरकार और मध्यप्रदेश कि सरकार दोनों पर उठ रहा है... क्योंकि सरकार का विमान बिना मुख्यमंत्री के इस्तेमाल नहीं किया जा सकता तो क्या अर्जुन सिंह ने विमान उपलब्ध कराया... क्या अर्जुन सिंह ने स्वर्गीय राजीव गाँधी के कहने पर एसा किया... एसे सवाल है जिनके जबाब २५ हज़ार लोगो के परिजन आज मांग रहे है जिनके अपने बिना बजह मारे गए...
अभी कुछ ही दिन पहले भोपाल जिला कोर्ट ने इसी कांड से जुड़े ७ आरोपियों को सजा सुने थी महज २ साल कि पर वो सारे के सारे जमानत पर महज २ घंटों में छुट गए... एसे में क्या हमारी न्यालिन प्रक्रिया ही एसी है कि हर मुजरिम बच के निकल जाता है और बेचारे इंसाफ के लिए रास्ता देख रहे लोगो कि आखे पथरा जाती है... जब कौर्ट का निर्णय आया तो ये भोपाल गैस पीडितो के लिए दूसरा सबसे बड़ा झटका था... पर इतना सब कुछ हो जाने के बाद आज भी क्यों नहीं अर्जुन सिंह सामने नहीं आ रहे कि आखिर किन परिस्थितियों में उस व्यक्ति को छोड़ा गया था क्या उनकी छुप्पी ये सवित कार रही है कि वे गुनेहगार है... पर जिस तरह से अर्जुन से के खिलाफ मीडिया में खबरे आ रही है उससे कांग्रेस का चेहरा कुछ एसा दिखाई दे रहा है... कि वो अर्जुन से कन्नी काट रही है... एसे में देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह से इस पुरे मामले से पर्दा उठता है... क्योंकि इसमें अर्जुन सिंह का निपटना तय ही माना जा रहा है... देखने वाली बात ये होगी कि कितनी जल्दी गैस पीडितो को इन्साफ मिल पता है... क्योंकि अब बक्त आ गया है कि इन लोगो के साथ दुबारा कुछ एसा न हो जिससे इनका भारतीय कानून और दंड व्यवस्था से विस्वाश उठ जाये...
आपको पता ही होगा कि आज भी भोपाल में लोग अपांग पैदा होते है... कुछ लोग एसे है जो आज भी जीवित है और उस त्रासदी का दंश झेलने पर मजबूर है... कोर्ट के जजमेंट के बाद एक एक कर जो पन्ने इस कांड से जुड़े हुए पलटे जा रहे है उससे साफ है कि कुछ और चोकने वाले नाम सामने आ सकते है... इस कांड ने न जाने कितने घर तवाह कर दिए... कितनो को बेघर कर दिया... पता नहीं पर लोगो को इतना पता है कि उन्हें इंसाफ चाहिए... जाहे जैसे भी मिले... जब ये कांड हुआ तो सडको पर लाशो के ढेर लग गए थे... रोज तड़फ के लोग दम तोड़ रहे थे... दफन करने के लिए जगह कम पड़ रही थी... लोगो को एसे ही जलाया जा रहा था... क्योंकि महामारी फैलने का अंदेशा था... जिन मुस्किल परिस्थितियों से भोपाल गुजरा है उसके बारे में सोचकर भी लोगो कि रहे काँप उठती है... उस बक्त जिन लोगो ने वो खोफ नाक मंजर देखा वो आज भी उसे याद कर देहेल जाते है... पर क्या हमारी सरकार एसे गुनेह्गारों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती... varen andorson जिन्दा होने के बाद भी भारत नहीं लाया जा सकता... मेरे खियाल से अब मुमकिन है पर करना कोई नहीं चाहता अगर हमारी जगह अमेरिका होता और वंहा पर ये त्रासदी हुई होती तो अब तक वो सब कुछ मटियामेट कर चूका होता वारेन को पकड़ने के लिए... आपने तो देखा है कि किस तरह उसने इराक को निस्तेनाबुत कर दिया... पर भारत क्यों और किन कारणों से पीछे है... सवाल सिर्फ इस बात का है... हमें पता है कि आरोपी इस जगह छुपा बैठा पर हम फिर भी उसे नहीं पकड़ पा रहे तो इसमें कही न कंही सवाल हम पर भी खड़ा होता है...हमें इसका जवाब जल्द ही खोजना होगा कंही भोपाल के लोग अपना आपा न खो दे...

Tuesday, June 8, 2010

राजनीती-पांच में से तीन अंक..

प्रकाश झा जैसे निर्देशकों से जनता बेहद ही उम्मीद लगाये रहती है पर जब उन उम्मीदों पर पानी फिर जाये तो क्या कहेंगे..अपहरण,गंगाजल जैसी जबरजस्त फिल्मे दे चुके प्रकाश झा ने राजनीती के गलियारों से जुडी फिल्म राजनीती जनता दरबार में पेश कि हालाकि फिल्म को अच्छी सुरुआत मिली है वो सिर्फ इसलिए कि सिनेमा घरों तक फिल्म आने से पहले शुर्खिया जो बटेर चुकी थी... फिल्म जिस जिवंत मुद्दे को धियान में रखकर बनाई गई है वो अच्छी सोच है और फिल्म कि कहानी भी विल्कुल सही दोड़ती है... पर फिल्म में कुछ ज्यादा ही ओवर जिसे कहते है वो साफ झलकता है... फिल्म में मनोज बाजपयी के अलावा किसी ने दमदार किरदार नहीं अदा किया...
फिल्म को आज कि महाभारत कहे तो जरा भी अतिस्योगती नहीं होगी... फिल्म में जो कुछ भी दिखाया गया है वो काल्पनिक नहीं बल्कि बास्तव में वेसा होता है... कहानी एक परिवार कि है एक इसे राजनितिक परिवार कि जिसके हर सख्श का मकसद सिर्फ गद्दी हासिल करना होता है... फिर उसके लिए किसी अपने कि हत्या भी क्यों न करनी पड़े... फिल्म कि सुरुआत बाप बेटी के बीच के तकरार से होती है... बाप अपनी पार्टी के लिए जीता है तो बेटी एक कमुनिस्ट के साथ उसकी विचारधारों से मोहित हो कर बाप से दूर हो जाती है पर भारती कमुनिस्ट पर एसी मोहित होती है कि वो अपना शारीर भी उसके सुपूर्त कर देती है... पर जब इसका इह्सास उस कमुनिस्ट को होता है तो वो पश्चाताप कि अग्नि में जल जाता है और बहुत दूर चला जाता है भारती एक बच्चे को जन्म देती है पर उसका भाई जिसका किरदार नाना पाटेकर ने निभाया है वो बदनामी के चलते उसे नन्ही सी जान को दूर छोड़ देता है पर बही बच्चा उसी राजनितिक घराने के एक बर्षो पुराने ड्राईवर के यंहा पलता है जो बड़ा होकर सूरज बनता है जिसका किरदार निभाया है अजय देवगन ने... जो दलित के लिए जीता है... इधर राजनितिक परिवार यानि कि पार्टी के अध्यझ को लकवा मार जाता है... तो कर्रकारी अधय्झ के रूप में भानुप्रताप को गद्दी मिल जाती है पर भानुप्रताप का भतीजा वीरेंद्र प्रताप सिंग जिसका किरदार मनोज बाजपयी ने निभाया है... उसके अन्दर कि ज्वाला भड़क उठती है और यंही से शुरू होता है महाभारत का संग्राम... भानुप्रताप कि गोली मार कर हत्या कर दी जाती है... तो विरेंद के पिता भानुप्रताप के बड़े बेटे प्रथ्विप्रताप को उतरादिकारी बना देते है... बनही पार्टी के अन्दर टिकेट को लेकर उठापटक चलती है... सूरज को विरेंद का सपोर्ट मिलता है भानुप्रताप कि मौत के पहते अपने दादा के जन्म दिन पर भानुप्रताप का छोटा बेटा जो विदेश में पीएचडी करता है हिंदुस्तान आता है... पर पिता कि मौत उसे यंही पर रोक लेती है या यूँ कहे कि राजनीती में वो भी उलझ जाता है... फिर राजनीती के दाव पेंच चलते है... आरोप प्र्तायारोप लगये जाते है... खून खराब होता है... दोनों दल के लोगो को ख़रीदा जाता है... वो सब कुछ होता है जो कुर्सी के लिए किया जा सकता है या यूँ कहे कि इंसान मरियादाये... इंसानियत... रिश्तेदारी... खून के रिश्ते सभी कि भूल कर सिर्फ कुर्सी के लिए जीता है... एक एक कर सब मरे जाते है... पृथ्वी मारा जाता है समर कि प्रेमिका जो विदेश से आती वो राजनीती का शिकार होती है... पृथिवी के मारे जाने के बाद पार्टी के लिए नया मुख्मंत्री का दावेदार कौन हो तभी नाम आता है इंदु का... पृथ्वी के वेवा और समर से मोह्बात करने वाली इंदु चुनाव में कड़ी होती है... पर सबसे बड़ा रोड़ा होता है विरेंद और सूरज जिन्हें मारने के लिया समर रचता हा साजिश... और पहले विरेंद को मरता है और फिर अपने भाई सूरज को जिसके बारे में वो नहीं जनता कि वो उसका ही भाई है... और येन्ही ख़त्म होती है राजनीती इंदु प्रथ्वी प्रताप बन जाती है मुखमत्री... आपको बता दे कि सोनिया गाँधी के रोल से मिलता हुआ चेहरा जरुर केटरीना कैफ उर्फ़ इंदु में दीखता है पर रोल दमदार नजर नहीं आता...
ये तो थी फिल्म कि कहानी... पर फ़िल्म में गाने का न होना और पीछे ka मुजिक भी दमदार नहीं है... आपको बता दे कि फ़िल्म कि कहानी जोरदार है इसके आलावा निर्देशन में कुछ कमिया नजर आई... एसे में इस फिल्म को पांच में से सिर्फ ३ अंक ही मिल सकते है... फिल्म एक बार देखने लायक है...

Sunday, June 6, 2010

देश के गदार... को फांसी दो...

नक्सलवाद आज देश कि सबसे विकराल समस्या है... जाने इस खूंखार दानव ने अब तक कितने बेगुनाहों को मौत के घाट उतर दिया..बाबजूद इसके कुछ लोग है जो आज भी उनकी वकालत करते है..एसे में इन लोगो को देश का गद्दार कहने में मुझे जरा भी झिझक नहीं होती... और हो भी क्यों क्योंकि में जिस माती में जनमा हूँ उसकी तरफ उठने वाली हर निगाह मेरे लिए किसी दुश्मन से कम नहीं... पर न जाने हमारे देश कि सरकार को क्या हो गया है वो आज क्यों मौन है जब एक लेखिका कहती है कि वो नक्सलवाद का समर्थन करती है... अभी कल कि ही बात है कि मुंबई में दिए अपने एक बयान में जानी मानी लेखिका और अपने को समाज सेविका कहलवाने वाली अरुंधती रॉय ने एक मंच पर ये कह दिया कि वो नक्सलवाद का समर्थन करती है अगर सरकार उन्हें इसके लिए जेल में डाल दे तो वो जेल जाने को तैयार है... यानि ये देश कि सरकार को खुला चैलेन्ज है... पर हमारे देश कि सरकार तो माशा अल्ला है वो कुछ नहीं करती.. पर इस बयान ने मुझ जैसे देश के सपूत के अन्दर उसके प्रति नफरत जरुर भर दी है॥
उस माँ से पूछा है क्या अरुंधती राय ने जाकर कि उसके बेटे के मारे जाने के बाद उस पर क्या बीत रही है... उस बहिन से पूछा है कि उसकी राखी का क्या होगा... उस मासूम से पूछा है क्या उसके बाप कि मौत के बाद उससे सहारा कौन देगा... उस पत्नी से पूछा है क्या विधवा होने का दर्द क्या है... अगर इन सवालों के जवाब मैडम आपके पास है तो आप नक्सालियों का सपोर्ट कर सकती है... मुझे जरा भी तकलीफ नहीं होगी पर आपने जो कहा है उसने बर्षो पुराने जख्मो को फिर से ताज़ा कर दिया है... ये हिंदुस्तान है इसलिए आप अभी तक बची हुई है बरना कब कि सलाखों के पीछे होती... मुझे सीजी के गृहमंत्री का वो बयान अच्छा लगा उन्होंने साफ कहा कि अगर अरुंधती या उस जैसी कोई भी हस्ती हमारे प्रदेश में होती तो उस पर अब तक कार्रवाई हो चुकी होती फिर उसके दूर गामी परिणाम जो होते तो होते... ननकी राम ने यंहा तक इशारा कर दिया कि केंद्र सरकार कार्रवाई करे... पर जनाव हमारे हुक्मरान बड़े दरिया दिल है उनकी दरिया दिली का ही नतिया है कि आज दुश्मन हमें मारे जरा है और हम मार खाते जा रहे है...
आज बक्त आ गया है कि देश में छुपे गदारों को गिरफ्तार कर नक्सालियों कि लाइफ लाइन बंद कर दी जाये... मैं किसी पर इल्जाम नहीं लगा रहा पर आज इतना तो साफ हो गया है कि अरुंधती जैसी सक्सियत हो नक्सालियों को सपोर्ट करती है... हमारी जानकारी नक्सालियों तक कैसे पंहुचती है इसका जवाब भी ये ही है... हमारे देश के लोगो को चाहिए कि वो जागे और सोई हुई सरकार को जगाने के लिए आन्दोलन करे क्योंकि ये मामला कोई छोटा मोटा नहीं है बल्कि सवाल है देश का... नक्सालियों को आज हमारी हर पल कि खबर कैसे लग जाती है... कैसे वे जान जाते है कि हम कान्हा से जाने वाले है... देश के एक बुद्धिजीवी का दल रायपुर आया हुआ था उनका कहना था कि वो नक्सालियों से बात चित कर बीच का रास्ता खोज रहा है... ताकि कोई हनी न हो... पर क्या बताये आज देश में इन बुद्धिजीवियों के कारण ही हम नक्सालियों के हाथो हर मोर्चे पर मात खा रहे है... एसे में सवाल ये उठता है कि क्या ये देश के गदार नहीं... क्या इन्हें कसाव कि तरह फांसी कि सजा नहीं सुनानी चाहिए.... कसाव ने तो अपने आकायों के कहने पर दुसरे मुल्क पर हमला किया ये तो अपने मुल्क के होकर हमारी पीठ पर ही खंजर उतर रहे है... सोचना होगा... कि क्या एसे लोग किसी आतंकबादी से कम है क्या... इन्हें भी मौत कि सजा मिलनी चाहिए...

Saturday, May 22, 2010

मुझको जैसे आदात सी पड़ गई तेरी...

मुझको जैसे आदात सी पड़ गई तेरी...
सुबह उठाता हूँ तो देखता हूँ सूरत तेरी...

तेरा हँसता हुआ चेहरा मेरे दिन भर कि ताजगी है...
मेरी आखों में बसी है मूरत तेरी...

मैं जब भी सोचता हूँ तेरे बारे में...
पलटता हूँ वो किताब जिसमे तस्वीर तेरी...

मेरे अपने तेरा मेरा रिश्ता पूछते है कभी...
मैं भी कह देता हूँ मैं जिस्म हूँ वो जान मेरी...

बस कहानी यंही पर आकर थम गई है...
हुआ में तेरा हुई तू मेरी...

मुझको जैसे आदात सी पड़ गई तेरी...
सुबह उठाता हूँ तो देखता हूँ सूरत तेरी..

Tuesday, May 18, 2010

खोफ नाक मंजर...

मैं क्या कहूँ जब भी याद आता है वो मंजर तो सिर सर्म से छुक जाता है और हर बार दिल यही सवाल करता है कि क्या इंसान के अंदर का इंसान मर चूका है क्या इंसानियत का सुपूर्त--खाक हो चुकी है क्योंकि अगर आप भी उस दिन कि घटना के बारे में सुनेगे तो आपको भी येही सवाल उठायेंगे... बात आज से ठीक एक सप्ताह पहले कि है... यानि कि १२ मई कि वक्त था शाम के पांच बजे का... और जगह राजधानी का बैरन बाज़ार इलाका... एक सख्स जिसका नाम नागराज था जो पेशे से धोबी था... उसने खुद पर केरोसिन का तेल डालकर आग लगा ली॥ घर के अन्दर जब उसने आग लगाई तो वो ५० फीसदी तो अंदर ही जल चूका था और उसके बाद वो दोड़ता हुआ बाहर निकला जिसने भी उस मंजर को देखा तो उसकी आंखे फटी कि फटी रह गई... अगर आप कि उस बक्त बांह पर होते तो आपकी भी रूह कांप उठती ... पर सब लोग तमाशबीन बनकर तमाशा देखने में लगे हुए थे पर किसी ने उस जलते हुए इन्सान को बचाने कि कोशिश भी नहीं कि... पर भला हो उस उन्जान व्यक्ति का जिसने पुलिस को फ़ोन कर दिया कोतवाली थाने का स्टाफ बन्हा पर पंहुच पर जनाव वे भी कुछ नहीं कर सके क्योंकि उन्हें उस जलते हुए नागराज के जलने कि बू आ रही थी कोई मुह पर रुमाल बांध रहा था तो कोई पुलिसवाला दूर भाग रहा था पर वाह रे हम इंसान कोई उसे बचाने कि लिए आगे नहीं आया... पर जब इसकी जानकारी मीडिया को लगी और वो बन्हा पर पहुची तो वो मंजर और इन्सान कि इंसानियत का कला चेहरा कैमरे में कद हो गया... मीडिया ने पुलिस को समझाया और जब वो नहीं समझे तो फिर मुझे जैसे खुद आगे आना पड़ा... क्योंकि अगर में आगे नहीं आता तो सायद बहुत देर हो गई होती... पर आपको बता दे कि देर तो हो चुकी थी.... क्योंकि नागराज बन्हा पर पड़े हुए तड़फ रहा था... उस भयानक मंजर को आप इस तस्वीर में देख सकते है... पर बाह रे पुलिस और उससे भी ज्यादा सर्म हम इन्सान को करना चाहिए जो खुद को पड़ा लिखा और समझदार बताते है...
आपको बताऊँ कि उस घटना कि जानकारी लगते ही मैंने सिटी एसपी सहित सीएसपी को फ़ोन लगाया पर सब के सब सीएम के प्रोग्रामे में लगे हए थे... जनता जो तड़फ रही है उससे ज्यादा मंत्रियों कि ड्यूटी बजाने में इन्हें अपना सही फर्ज नजर आता है... पर उसके बाद हमने उसे अम्बुलेंस में डाल कर आंबेडकर पहुचाया पर बन्हा पर वो मर चूका था... आपको बता दे कि जब कोतवाली थाने को इसकी जानकारी दी गई थी कि एक व्यक्ति ने आग लगा ली है तो थाने से निकलने से पहले अन्बुलांस को खबर कर देनी चाहिए... ताकि बक्त रहते वो बन्हा पर पहुच जाये... पर जनाब एएसई साहब ने मोके पर पंहुचकर अमबुलंस को फ़ोन किया... आप पुलिसवालों कि कार्यप्रणाली के बारे में समझ सकते है... वो भी राजधानी पुलिस जिस हर पर मुस्तेद रहना चाहिए॥ पर इनका क्या है ए तो सोते रहते है... शहर में लूट, चोरी,डकैती जैसी वारदाते आम हो गई है... हत्याए तो मानो छोटी छोटी बातो पर कर दी जा रही है... अपराधियों पर पुलिस का कोई भय नहीं रह गया है... अच्छा हुआ कि मीडिया बन्हा पर वक्त रहते पहुँच गई वर्ना पुलिस का चेहरे और बन्हा पर खड़े इंसान रूपी बुजदिल लोगो कि सक्ले कैसे सामने आती...
यंहा पर इतना कहना जरुरी है कि आज हमें आपने को सुधारना होगा क्योंकि आज नागराज के परिवार पर ए कहर टुटा है खुदा न करे कल को तुम्हारे साथ एसा कुछ घटे तो क्या होगा इसका अभी से एहसास करना जरुरी है... आपको बताऊ कि उस जगह पर करीब २०० से ज्यादा लोग थे पर किसी ने एक कदम भी आगे नहीं बढाया कि उस जलते हुए नागराज को हॉस्पिटल तक पहुचाया जा सके... देश में ए पहेली घटना नहीं है... इससे पहले भी इससे कंही भयानक तस्वीरे सामने आ चुकी है पर समझ नहीं आता कि क्यों जनता मूक दर्शक बड़े सिर्फ तमाशा देखती रहते है... क्यों वो अपनी नेतिक जिम्मेदारी नहीं समझती... कब तक पुलिस मोके पर पहुचेगी और कब सख्स को अस्पताल पहुचाया जायेगा... अगर नागराज को बक्त रहते अस्पताल पहुच्या जाता तो सायद वो बच जाता... पर इस धरती पर किसे किसकी फिक्र है... सब अपनी मस्ती में मस्त है... पर क्या येही इन्सनियता है इससे अच्छे तो जानवर है जो अपने साथी कि जान बचाने के लिए मौत को भी गले लगा लेते है... जरा हमें उनसे कुछ सिखने कि जरुरत है... जल्द सिख जाये तो बेहतर रहेगा...

Monday, May 17, 2010

नक्सालियों का एक और वार...

नक्सालियों ने एक बार फिर ब्लास्ट कर पुरे देश को झाग्झोर दिया... सुकमा दंतेवाडा मार्ग पर हुए इस हमले से जन्हा राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक के पैरो तले जमीं खिशक गई तो दूसरी तरफ अब आम जनता कि सुरक्षा पर हुआ ये नक्सल हमला इस बात कि चेतावनी दे गया कि अब जनता भी उनके निशाने पर हैआज शाम करीब बजे खबर आई कि नक्सालियों ने एक बस को उड़ा दिया है... जिसमे ६० लोग सवार थे जिसमे एसपी भी बैठे हुए थे... नक्सालियों का मैं टार्गेट वे ही थे क्योंकि नाक्साली उनके दुश्मन यानि कि पुलिस बालों का साथ देने वालों को कभी छोड़ते नहीं..... पर नाक्सालिओं ने आज जो किया अगर इस हमले के बाद भी दोनों सरकारों कि नीद नहीं टूटी तो ये मान लीजिये कि देश का और उन निर्दोषों का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा...
घटना के तुरंत बाद निंदा से उत्प्रोत वयान आने शुरू हो गए... किसी ने से नक्सालियों कि कायराना हरकत करार दिया तो कोई इसे नक्सालियों कि बोखलाहट बताने में लगा हुआ था... प्रदेश के गृहमंत्री ने यंहा तक कह दिया कि अब उनका अंतिम समय आ गया है...... हलाकि ननकी राम कवर इस तरह कि बाते हर वार करते है... पर ये भूल जाते है कि न तो वे न उनकी सेना नक्सालियों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पी है॥ आपको बता दे कि पिछले ४५ दिनों के अन्दर ये नक्सालियों के द्वारा किया गया तीसरा सबसे बड़ा हमला है... वो भी राजमार्ग जैसी सड़क पर... आज इस घटना के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने कहा है कि उसी रास्ते से एसपी गुजरे थे और दो पुलिस के वाहन और इस वाहन में सवार थे एसपीओ जिन्हें मारने के लिए ये पूरा चक्र्वुय रचा गया था... आपको बता दे कि डॉक्टर सिंह ने ३५ लोगो के मारे जाने कि पुष्टि कर दी है... पर ये संखिया और बढ सकती है...
आखिरकार ये हमले होते कैसे है... आपको बता दे कि नाक्साली कई कई दिनों तक पुरे इलाके का मुआयेना करते है... और ये कोशिश करते है कि लैंड मांइड एसी जगह फिट किया जाये जो ज्यादा नुकसान कर सके... सड़क पर लैंड मैंड लंगाने के लिए सड़क को खोदना उसमे लैंड मैन्स लगाना और उसके तार को कई मीटर दूर ले जाना और उस घडी का इन्तेजार करना जब जवानो का वाहन उस रास्ते से गुजरे... और फिर दोनों तारो को मिला देना एसे होता है ब्लास्ट... पर आज स्थिति बहुत ही भयाबक हो चुकी है... इसके लिए सेना उतरनी ही होगी बरना वो दिन दूर नहीं जब पुरे राज्य पर नक्सालियों का राज्य स्थापित हो जायेगा... और जो वे चाहते है... पर अभी भी राज्य सरकार गंभीर नहीं है... पर इतना जरुर है कि आज कि घटना के बाद ननकी राम कवर और डॉक्टर रमन सिंह के माथे पर चिंता के बादल दिखाई दे रहे थे... और कल रमन सिंह तो दिल्ली जा रहे है... आला नेताओ से मिलने... हो सकता है कि कुछ हल निकलने के लिए बात आगे बड़े बरना ये तो निंदा और कायराना हरकत के आलावा और कुछ भी नहीं कह सकते...
चलिए देखते है कि दिल्ली में जाकर क्या गुल खिलता है या फिर बनही वयान कि अभी सेना उतरने कि जरुरत नहीं है... मैं एसे कहूँ कि अभी सेना उतंरने कि जरुरत नहीं है कुछ और ज्यादा लोगो को एक साथ मरने दो...

Thursday, May 13, 2010

क्यों चला है वो मेरा कल बताने...

खुद को नहीं पता क्या होगा भविष्य उसका...
क्यों चला है वो मेरा कल बताने...
कोई नहीं जनता ये कल का खेल क्या है.............
बिगड़ जाता है वर्तमान जो लगा मैं कल बनाने...


सपने देखना कोई बुरी बात नहीं है...
दूर तक सोचना बिलकुल सही है......
देखना और सोचना आँखे खोलकर तुम...
जो टुटा सपना एक बार तो बड़ा मुस्किल है नया फिर बनाने...


चादर के अन्दर पैर हो तो ही भला है...
बाहर निकले तो तू हाथ फेलाए खड़ा है...
अन्दर बाहर में से तू अन्दर को ही चुनना...
रहेगा सुकून हर पर तो नहीं होगी मुस्किल नया घर बनाने...





Sunday, May 9, 2010

धरती पर खुदा है माँ...

दुनिया... और इस दुनिया में इन्सान का जन्म किसी किसी नारी कि कोख से हुआ होगा... यानि कि बिना किसी तर्क वितर्क के हमें स्वीकारना होगा कि माँ धरती पर खुदा का रूप है..... या मैं ये कहूँ कि माँ ही भगवान है तो कुछ भी गलत नहीं होगा... में बचपन से जितना पिता के करीब नहीं था उतना माँ के करीब रहाक्योंकि मुझे क्या हर सक्श को येही लगता होगा कि वो माँ से उन सब चीजो को सेयर कर सकते है जो वे पिता से नहीं कह सकते... क्योंकि माँ हर बक्त बच्चे के साथ रहती है वो पिता नोकरी पर चले जाते है... मेरे पिता पुलिस विभाग में कार्ररत है... पुलिसवालों कि नोकरी का कोई ठिकाना ही नहीं कब आते है कब जाते है पता नहीं... हम जब स्कुल कालेज में थे तो रात में पिता जी के आने के पहले सो जाया करते थे और सुबह उनके नोकरी पर जाने के बाद उठा करते थे एसे में उनसे मिल पाना ही मुस्किल हुआ करता था... जब कभी जल्दी आते तो यंहा वहा कि बैटन में समय ही बीत जाता था... अगर कंही से कुछ लड़ाई झगडे कि सिकायत पापा के पास आती तो माँ के आचल का सहारा लेकर खड़े हो जाते पिता जी से माँ ही निपटती हमें आगे आने कि जरुरत नहीं पड़ती... एसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि माँ हर कदम पर मेरे साथ थी...
दिन बीतते गए और मैं धीरे धीरे बड़ा होता गया... एनसीसी में था तो कई बार बाहर जाना पड़ता था तो माँ पिताजी,दादी और छोटी बहिन घर पर ही रहते पर माँ से एसा एक भी दिन नहीं गुजरता जब उससे फ़ोन पर बात नहीं करता हूँ... उससे दो तीन मिनिट ही बात हो जाती तो मानो फिर से एक उमंग सी जग जाती जैसे किसी ने फिर से उर्जा शारीर में भर दी हो... आज में इ टीवी में जॉब करता हूँ... अपने घर से बहुत दूर...मेरा घर जबलपुर के पास बरेला मंडला रोड पर पड़ता है... ३ महीने पहले छोटी बहिन कि शादी हो गई अब तो माँ एक दम अकेले हो गई है... पिता जी नोकरी पर चले जाते है और दादी छोटे चाचा लोगे के यंहा पर... मेरी माँ घर पर अकेली पड़ जाती है... मैं उससे तीन महीने हो गये नहीं मिला हूँ... पर फ़ोन के जरिये उससे मुलाकात हो जाती है... वो रोज पूछती है कि खाना खाया दोपहर में टिफिन खाया कि नहीं... घर कब निकलेगा... जरा सोचो उसे अपने कलेजे के टुकड़े का कितना खियाल है... एसी होती है माँ... दुनिया में माँ कि तुलना करना तो छोडिये उस बारे में सोचना भी गलत है... आज माँ के चेहरे पर ख़ुशी है क्योंकि उसका बेटा कमाने खाने लगा है... पर उससे चिंता भी हर पल कि मेरे सोने से लेकर खाने कि मेरे कपडे से लेकर मेरे रहने कि... पर यंहा पर ये जरुर कहना जरुरी है कि पिता जी भी माँ के सामान मेरी जिन्दगी है... क्योंकि इन दोनों के आशीर्बाद से ही में आज यहाँ पर हूँ... मुझे वो दिन आज भी याद है कि जब तक में घर पर था तो कभी मुझे अपने कपडे धोने नहीं दिया... मुझे खाई थाली उठाने नहीं दी... यंहा ता कि जब में कभी चादर ओड़े सो जाता था और बाजु में टेप बजा करता था तो वो कभी नहीं कहती थी कि टेप क्यों चल रहा है... लाइट क्यों जल रही है... उसने मुझे कभी लिखने और पड़ने के लिए कभी नहीं चिल्लाया... और वो सदा मेरा फेवर करती है... पर आज मैं उससे दूर हूँ तो हर पर उसकी याद आती है... कभी कभी वो पापा से मेरे कारण लड़ाई भी कर लिया करती थी... दुनिया कितनी भी बदल जाये पर माँ का रूप नहीं बदल सकता यहाँ तक कि माँ माँ ही रहेगी कुमाता नहीं होगी... बेटा भले ही कपूत हो जाये...
,,, आज माँ का दिन है दुनिया कि हर माँ को मेरा प्रणाम,,,
...तेरा आशिर्बाद सदा हम पर बना रहे...

Saturday, May 8, 2010

सोते रहोगे तो लूट जायेगा देश...

एक बार फिर नक्सालियों ने कायराना हरकत करते हुए... अपने इरादे साफ कर दिए..... बीजापुर के तोड्पाल में आज शाम करीब .३० बजे जब जवान राशन ले जा रहे थे तभी उनकी गाड़ी को नक्सालियों ने उड़ा दिया...जिसमे जवानो कि मौत हो गई..... जबकि कई जवान घायल हो गये... घटना कि जानकारी लगते ही पुरे छग में हडकंप मच गया... तो दूसरी तरफ पुलिस और सीआरपीएफ दोनों ही डिपार्टमेंट में खलवली मच गई...सीआरपीएफ कि १६८ बटालियन के ये जवान राशन लेकर लौट रहे थे... नक्सालियों द्वारा किया गया ये हमला ये दर्शाता है कि शांति के नाम पर कि जा रही यात्रा उन्हें मंजूर नहीं है... देश के सभी बड़े बुद्धिजीवी एक मंच पर खड़े होकर बोल रहे थे कि नाक्साली हथियार डाल देंगे अगर सरकार अपने ग्रीन्हांट ऑपरेशन को बंद करे... उनका कहना था कि बो नक्सालियों से बात करेंगे... पर लगता है कि ये सारा कुछ एक दिखाबा है क्योंकि इन बुद्धिजीवियों को क्या ये नहीं पता कि... नाक्साली बात करने को तैयार नहीं ये सिर्फ मरना और मारना जानते है... एसे में अगर ये बुद्धिजीवी सरकार पर दबाब बनाते है तो ये साफ़ दर्शाता है कि बुद्धिजीवी नक्सल समर्थक से ज्यादा और कुछ नहीं... या फिर ये देश के सामने मीडिया के जरिये परचलित होना चाहते है... नक्सालियों का ये हमला ठीक उस बक्त हुआ है जब बुधिजीविओं का दल दंतेवाडा के दौर पर है...
नक्सालियों कि आज कि इस हरकत को कोई भी बुजदिल भरी कार्रवाई कह सकता है पर इसे नक्सालियों के लिए कामयाबी और हमारे देश के लिए एक और बड़ी बिफलता से ज्यादा कुछ और नहीं... आज प्रदेश के गृह मंत्री ने केंद्र सरकार से सेना कि मांग तक कर डाली ये साबुत है इस बात का कि अब नक्सलबाद को रोकना या नाक्साली गतिविधियों को रकना इनके बस कि बात नहीं है... बन्ही नक्सालियों ने साफ़ संकेत दिए है कि वे बन्दुक डालने बालो में से नहीं है... और लगातार जवानो को मारते रहेंगे... आज कि घटना के बाद भी अगर सरकारों कि नीद नहीं खुलती है तो ये देश के लिए किसी दाग से कम नहीं कि दुश्मन लाशे बिछा रहा है और हम लाशों कि गिनती में लगे हुए है... ये कहानी सिर्फ और सिर्फ आज शहीद हुए आठ जवानो कि नहीं है बल्कि अब तक शहीद जवानो कि है... जो देश कि सरकार से इस बात कि इल्तजा कर रहे है कि उनकी रूह को शांति दिला दो... इस नक्सलबाद को जड़ से समाप्त कर दो... ताकि कोई और शहीद न हो... और ये नेता और एसी में बैठे लोग क्या समझे कि दर्द क्या होता है... बन्ही प्रदेश कि डीजीपी का कहना है कि हमें जबावी कार्रवाही के लिए तैयार रहना चाहिए......
पर आखिर हम कब देंगे जवाब तब जब ८ नहीं ३२ नहीं ७६ नहीं संखिया सेकड़ो पर कर जायेगे तब भेजेगो सेना..... तब तक इतनी दे हो जाएगी कि लड़ने के जवाब कम पड़ जायेंगे... क्योंकि देश में जवाब रोजाना मरे जा रहे है एसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अब बक्त आ गया है कि नक्सालियों का सफाया कर दिया जाये... बरना ये नाशुर इतना बढ जायेगा कि शारीर के कई अंगो में जहर घोल देगा... मुझे नहीं लगता है कि इंडियन लीडर्स में ये ताकत है कि वो इंदिरा गाँधी जैसा वोल्ड स्टेप उठा सके..क्योंकि उसके लिए पहले देश हित सोचना होगा फिर अपना व्यक्तिगत हित... आज के नेता सिर्फ अपनी दुकान चलते है ... उन्हें इससे क्या कि देश में क्या होना चाहिए क्या नहीं... नक्सल समस्या आज कि नहीं है... आप खुद सोचिये कि हमने इसे कितनी इज्जत के साथ पाला है... क्या देश के नेताओ को उस बक्त समझ नहीं आया कि ये आने वाले दशकों में देश के लिए नाशुर बन जाएगी... अगर नहीं सोच तो ये हमारा दुर्भाग्य है कि हमें ये विरासत उनसे मिली... जिनमे दूर तक सोचने और देखने कि शक्ति ही नहीं थी...
मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगा कि अब भी बक्त है नीद तोड़ के जाग जाओ बरना ये नाक्साली आपकी राजधानी में अगर हमला न कर दे तो कहियेगा..
एक बार फिर नक्सालियों ने कायराना हरकत करते हुए... अपने इरादे साफ कर दिए..... बीजापुर के तोड्पाल में आज शाम करीब .३० बजे जब जवान राशन ले जा रहे थे तभी उनकी गाड़ी को नक्सालियों ने उड़ा दिया...जिसमे जवानो कि मौत हो गई..... जबकि कई जवान घायल हो गये... घटना कि जानकारी लगते ही पुरे छग में हडकंप मच गया... तो दूसरी तरफ पुलिस और सीआरपीएफ दोनों ही डिपार्टमेंट में खलवली मच गई...सीआरपीएफ कि १६८ बटालियन के ये जवान राशन लेकर लौट रहे थे... नक्सालियों द्वारा किया गया ये हमला ये दर्शाता है कि शांति के नाम पर कि जा रही यात्रा उन्हें मंजूर नहीं है... देश के सभी बड़े बुद्धिजीवी एक मंच पर खड़े होकर बोल रहे थे कि नाक्साली हथियार डाल देंगे अगर सरकार अपने ग्रीन्हांट ऑपरेशन को बंद करे... उनका कहना था कि बो नक्सालियों से बात करेंगे... पर लगता है कि ये सारा कुछ एक दिखाबा है क्योंकि इन बुद्धिजीवियों को क्या ये नहीं पता कि... नाक्साली बात करने को तैयार नहीं ये सिर्फ मरना और मारना जानते है... एसे में अगर ये बुद्धिजीवी सरकार पर दबाब बनाते है तो ये साफ़ दर्शाता है कि बुद्धिजीवी नक्सल समर्थक से ज्यादा और कुछ नहीं... या फिर ये देश के सामने मीडिया के जरिये परचलित होना चाहते है... नक्सालियों का ये हमला ठीक उस बक्त हुआ है जब बुधिजीविओं का दल दंतेवाडा के दौर पर है...
नक्सालियों कि आज कि इस हरकत को कोई भी बुजदिल भरी कार्रवाई कह सकता है पर इसे नक्सालियों के लिए कामयाबी और हमारे देश के लिए एक और बड़ी बिफलता से ज्यादा कुछ और नहीं... आज प्रदेश के गृह मंत्री ने केंद्र सरकार से सेना कि मांग तक कर डाली ये साबुत है इस बात का कि अब नक्सलबाद को रोकना या नाक्साली गतिविधियों को रकना इनके बस कि बात नहीं है... बन्ही नक्सालियों ने साफ़ संकेत दिए है कि वे बन्दुक डालने बालो में से नहीं है... और लगातार जवानो को मारते रहेंगे... आज कि घटना के बाद भी अगर सरकारों कि नीद नहीं खुलती है तो ये देश के लिए किसी दाग से कम नहीं कि दुश्मन लाशे बिछा रहा है और हम लाशों कि गिनती में लगे हुए है... ये कहानी सिर्फ और सिर्फ आज शहीद हुए आठ जवानो कि नहीं है बल्कि अब तक शहीद जवानो कि है... जो देश कि सरकार से इस बात कि इल्तजा कर रहे है कि उनकी रूह को शांति दिला दो... इस नक्सलबाद को जड़ से समाप्त कर दो... ताकि कोई और शहीद न हो... और ये नेता और एसी में बैठे लोग क्या समझे कि दर्द क्या होता है... बन्ही प्रदेश कि डीजीपी का कहना है कि हमें जबावी कार्रवाही के लिए तैयार रहना चाहिए......
पर आखिर हम कब देंगे जवाब तब जब ८ नहीं ३२ नहीं ७६ नहीं संखिया सेकड़ो पर कर जायेगे तब भेजेगो सेना..... तब तक इतनी दे हो जाएगी कि लड़ने के जवाब कम पड़ जायेंगे... क्योंकि देश में जवाब रोजाना मरे जा रहे है एसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि अब बक्त आ गया है कि नक्सालियों का सफाया कर दिया जाये... बरना ये नाशुर इतना बढ जायेगा कि शारीर के कई अंगो में जहर घोल देगा... मुझे नहीं लगता है कि इंडियन लीडर्स में ये ताकत है कि वो इंदिरा गाँधी जैसा वोल्ड स्टेप उठा सके..क्योंकि उसके लिए पहले देश हित सोचना होगा फिर अपना व्यक्तिगत हित... आज के नेता सिर्फ अपनी दुकान चलते है ... उन्हें इससे क्या कि देश में क्या होना चाहिए क्या नहीं... नक्सल समस्या आज कि नहीं है... आप खुद सोचिये कि हमने इसे कितनी इज्जत के साथ पाला है... क्या देश के नेताओ को उस बक्त समझ नहीं आया कि ये आने वाले दशकों में देश के लिए नाशुर बन जाएगी... अगर नहीं सोच तो ये हमारा दुर्भाग्य है कि हमें ये विरासत उनसे मिली... जिनमे दूर तक सोचने और देखने कि शक्ति ही नहीं थी...
मैं तो सिर्फ इतना ही कहूँगा कि अब भी बक्त है नीद तोड़ के जाग जाओ बरना ये नाक्साली आपकी राजधानी में अगर हमला न कर दे तो कहियेगा...



Sunday, May 2, 2010

नक्सल गद के साथ साथ आतंक का नया अड्डा...

अभी तक हम कहते रहे थे कि नक्सल बाद छातीशगढ़ में अपनी पैठ बना चूका है पर आज राजधानी में जो हुआ उसे देखकर ये कहना अब बेहद ही जरुरी हो गया है कि नक्सलबाद के साथ साथ अब ये आतंक के निशाने पर है...... आज पंजाब पुलिस और रायपुर पुलिस कि संयुक्त कार्रवाई ने इस बात का खुलासा कि या कि आतंकबादी बब्बर खालसा आतंकबादी संगठन का सदस्य है... और बर्तमान में रायपुर के देवेन्द्र नगर के पास फोकट्पारा में अपने एक दोस्त के घर में करीब पांच दिनों से रह रहा था... ये तो पंजाब पुलिस कि सक्रियता का नतीजा है कि उसने इस खूखार आतंकबादी कि गिरफ्तार का लिया... सबसे पहले टीवी ने इस खबर को फ्लेस किया था... कि आतंकबादी कि गिरफ्तारी हुई है और बो बब्बर खालसा का भगोड़ा आतंकबादी है... जिसकी पंजाब पुलिस को काफी लम्बे समय से तलाश थी...
निर्मल सिंह उर्फ़ निम्माँ नाम का ये आतंकबादी रायपुर में जिस घर में रह रहा था वो घर है पप्पू पड्डा का... पप्पू ने निर्मल का साथ दिया... पुलिस का ये कहना है... आपको बात दे कि इ टीवी कि टीम ने सबसे पहले उस घर को खोज निकला जो घर पप्पू पड्डा का है... उस घर में निर्मल पिछले चार दिनों से रह रहा था... आपको बता दे कि पोइल्स ने पप्पू को भी गिरफ्तार का लिया है॥ और पूछताछ कर रही है मिली जानकारी के मुताबिक पप्पू से निर्मल के संबध बीते १५ सालों से है... और निर्मल का उसके घर आना जाना लगा रहता था... जानकारी तो ये भी है कि निर्मल करीब दो से तीन बार आ चूका है... फिलहाल पंजाब पुलिस के आला अधिकारी रायपुर पहुच चुके है और आतंकबादी को पंजाब ले जाने कि तयारियों में जुट गए है... पर रायपुर में इस खबर ने हडकंप मचा दिया है... क्योंकि अभी तक हम सिर्फ नक्सलबाद से जूझ रहे थे पर आतंकबादी कि गिरफ्तारी ने ये साबित कर दिया है कि अब आतंकबादी का अगला ठिकाना रायपुर है... हालाकि रायपुर पुलिस यंहा तक कि छग पुलिस कुछ भी कहने कि स्थिति में नहीं है सिर्फ इतना कि निर्मल उर्फ़ निम्मा गिरफ्तार हुआ है... पर इस आतंकबादी कि गिरफ्तारी ने देश का धियान रायपुर में टिका दिया है... हालाकि मिली जानकारी के मुताबिक कुछ कुछ और आतंकबादियों के छिपे होने कि संभाबना है... आईबी और अन्य गुप्तचर बिभाग जाँच में जुटा हुआ है....
खुद प्रदेश के गृह मंत्री ने इस पर मुहर लगायी थी...

Sunday, April 25, 2010

मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे.........

मेरी कब्र पर वो पहली बार आये है ......
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे.........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

उनकी उठ रही थी डोली जब बन्हा... मातम थे मेरे घर में खुसिया थी बहा...
अब मैं हूँ कब्र में... वो बाहर कड़ी यंहा...
बहा रही है आंसू... याद आ रहा खुदा.....
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

दोनों ने खाई थी कसमे मगर बहुत... मैंने तो निभाई पर उसने तोड़ दी........
जिन्दगी कि गाड़ी दो रहे पर रोक दी.......
उसकी बेवफाई ने हर लिया जी..............
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

सालों बीत गए अब आया है ख्याल... बच्चे है उसके चार और पति है दलाल...
मौत के बाद मेरी उठने लगे सवाल......
वो आई मेरी कब्र पर होने लगा बबल...
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

अब सरे राज फिर से खुलने लगे है... कब्र में प्यार के चर्चे सुनने मिले है..........
अब कौन समझये सबको हम यंही भले है...
तेरी लिए कब्र को मेरी ले जाने तुले है.........
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

कब्र में भी हमको न मिल सका सुकून... मेहरवानी करना अब आना न रंगून....
बहुत हुआ अब बक्श दो सगुन...
तड़फ रही है न बताओ कानून....
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

Tuesday, April 20, 2010

आत्माये रो पड़ी है....

हिंदुस्तान आज जी विकराल समस्या से जूझ रहा है वो कोई और नहीं बल्कि नक्सलबाद है...आतंकबादी तो किस जगह से गोली मार रहे है वो नजर आता है..........पर ये बुजदिल नक्सलबादी कंहा पर अम्बुसे लगाये बैठे है इसकी किसी को बू तक नहीं आती...... नक्सलबाड़ी जगह से सुरु हुआ ये अभियान अब सिर्फ और सिर्फ हिंसा का रास्ता अपनाकर लोगो के खून का प्यासा बन गया है...... रोजाना कंही न कही से खबर आ ही जाती है कि नक्सलबादियों ने हमला कर दिया है... हमें कितना नुक्सान होता है ये सब जानते है पर कोई ये नहीं जनता कि उन्हें कितनी छति हुई है... क्योंकि वो अपने साथियों के शब् को उठाकर ले जाते है..बाबजूद किसी ठोश कार्रवाही के केंद्र सरकार अपना अलग बयाँ देती है तो राज्य सरकार अलग... कोई कभी कहता है कि गोली का जबाब गोली से देंगे..तो कंही से ये बयान दिया जाता है कि अगर वो बातचीत को तैयार है तो हम बात करेंगे... पर सवाल वाही है कि कब तक देश सहिदों के तिरंगे में लिपटे हुए सवो को स्राधांजलि देता रहेगा आखिर कब तक...

अभी ७४ जवानो कि eमौतों पर देश ठीक से आंशु भी नहीं बहा पाया है कि इन सत्ता के मत्बलों के रोज आ रहे बयानों से इन जवानो कि आत्माये रो पड़ी है... और सवाल उठा रही है कि इनकी ये क़ुरबानी क्या इसी तरह ब्यर्थ में जाती रहेगी... एक तरफ तो केन्द्रीय गृह मत्री प.चिदम्बरम कहते है कि नक्सालियों से बातचीत के रास्ते खुले है तो दूसरी तरफ प्रदेश के मुखिया डॉक्टर रमन सिंह कहते है कि गोली का जबाब गोली से दिया जायेगा... क्या इन्ही बयानों कि एसे se नक्सल समस्या गहराएगी और चूड़िया टूटती रहेंगी... पर आज होती रहेंगी... सवाल अनाथ होते रहेंगे... क्या इन्ही बयानों में देश मिटाता रहेगा... ये तो हम और आप सोच लेते है क्योंकि हमने अपनों को खोया है पर ये नेता मंत्री क्या जाने जब इनका कोई मरेगा तो इन्हें उसकी पीड़ा का एहसास होगा... कई सरकारे आई और चली गई॥पर नक्सल बाद है कि मिटने का नाम ही नहीं ले रही..सवाल ये नहीं है कि हम क्या कर रहे है सवाल ये है कि हम अपनी आने वाली पीडी के लिए क्या जिन्दगी से पहले मौत दे रहे है... मुझे लगता तो एसा ही हैजब तक कोई हमारे जैसी सोच रखने वाला नहीं आयेगा तब तक कुछ नहीं होने वाला... किसी ने ठीक ही कहा है कि अगर वक्त रहते साप के फन को नहीं कुचला जाये तो वो वेहद ही खतरनाक के साथ साथ जानलेवा भी हो सकता है... हमने इस नासूर को पहचानने में देर नहीं बल्कि बहुत देर कर दी... अब ये तिल तिल कर हमारी जा ले रहा है... पर किसी ने ये भी कहा है कि अगर गलती को दौहराया जाये और उससे सिख ली जाये तो आने वाला वक्त सुहाना होता है... उम्मीद करनी चाहिए कि ये नेता मंत्री जरुर कुछ तो सिख लेंगे अगर इनके अन्दर इंसानियत जिन्दा बची होगीऔर ये भी कहना चाहूँगा कि राज्य हमारा है इसलिए इसकी हिफाजत कि जिम्मेदारी भी हमारी है... अगर सरकारे नहीं जगती है तो जनता को जागना होगा... क्योंकि इन्हें तो सुरक्षा में रहते हुए कोई नहीं मार सकता पर हमारी जान कि हर पल डर है... ये तो वोरिया विस्तर बांध कर विदेश में जाकर रहने लगेंगे क्योंकि उनकी जमीं जायजाद और बैंक अकाउंट बही पर है... यंहा तक कि संताने भी विदेशी धरती में पल बढ रही है...

मैं तो चलते चलते इतना ही कहना चाहूँगा कि वक्त है मिटा दो नक्सलबाद वरना वो हमें मिटा देगा

Saturday, April 17, 2010

सानिया सोएब कि शादी क्या हुए... मीडिया कि चांदी हो गई...
दंतेवाडा में चली गोलिया... पर वो खबर पानी हो गई...............
जोड़े ने कितने कपडे बदले और कहा से ख़रीदे है... इस पर थी सबकी नजर............
पर कितनी सुहागने सफेद लिबाज हुई... उनके दर्द कि किसी ने नहीं दिखाई खबर..
अरे आज क्या इसी को पत्रकारिता कहते है... अगर कहते है तो मुझे माफ़ करो.......
मुझे पत्रकार जमात में होने का अब अफसोश है.....
लिख रहा हूँ जो दिल कि बात यही मेरा आक्रोश है...

१....
एक एक कर जवानो कि लाशे धरती पर गिर रही थी.............
कंही माथे का सिंदूर पूछ रहा था कंही पर चुडिया टूट रही थी...
पर मीडिया लगा हुआ था सानिया के हाथो में लगी मेंहदी का रंग जानने...
कौन से कपडे पहनेगी वो इस खबर को ब्रेअकिंग न्यूज़ के साथ चलाने......
कंही देर न हो जाये सानिया और सोएब कि जिन्दगी कि कोई खबर चुक न जाये...
क्या यही है तेरा रूप... अगर है तो दोस्त मेरी बात मान ले...
लोगो के कुस्से से पहले अपने कलम थम ले.......................
अगर कलम टूट गई तो में भी नहीं जाता पाउँगा अफसोश...
लिख रहा हूँ जो दिल कि बात यही मेरा आक्रोश है................

२....
एक दो चनलों ने हिम्मत दिखाई... और दंतेवाडा तक छलांग लगाई...
वो सिर्फ इसलिए कि मंत्री जी दौर पर थे... सायद उनकी कबरेज से मिल जाये कुछ मलाई...
क्योंकि आज का मीडिया मंत्रियों के आशीर्बाद से चलता है...
और जिसकी सरकार उसकी नोकरी करता है... ..................
आज अगर कंहू कि ये बिन पेंदी का लोटा है तो कुछ गलत नहीं होगा..................
सानिया कि शादी कि खबर से लेकर सुहागरात तक का पैसा सायद मिला होगा...
अगर ये सच है तो ये भारत दोष है.........................
लिख रहा हूँ जो दिल कि बात यही मेरा आक्रोश है...

३....
७४ जवानो कि शहादत को मैं तो व्यर्थ नहीं जाने दूंगा.......
लिखता रहूँगा आखरी दम तक लड़ने वोलों का साथ दूंगा...
रही बात सानिया शोएब कि शादी कि तो वो हो चुकी है.......
अब भी बक्त है जाग जाओ... बरना बहुत देर हो जाएगी......
माफ़ी मागोगे तो वो भी न मिल पायेगी.............................
मगर इतना याद रखो कि दुवारा ये गलती न हो.................
क्योंकि बार बार गलतियों उफनता आक्रोस है...................
लिख रहा हूँ जो दिल कि बात यही मेरा आक्रोश है.............

मुझे पत्रकार जमात में होने का अब अफसोश है.....
लिख रहा हूँ जो दिल कि बात यही मेरा आक्रोश है...

Thursday, April 15, 2010

Saturday, April 10, 2010

सत्य और असत्य में क्या फर्क है.....

सत्य कि खोज में निकला वो..............................................
असत्य ने उसको घेर लिया.................................................
असत्य को सत्य समझ के उसने जीना सीख लिया..............
सत्य से सामना हुआ भी उसका पर उसे लगा वो असत्य है...
अब कौन बताये उसको सत्य और असत्य में क्या फर्क है.....

बिल्ली रास्ता काट गई तो रुक गया वो दो पल को.................
सुन रखा था उसने कि होता है अबसगुन आने वाले कल को...
सुनी सुनाई बातों पर हम यकीन क्यों कर लेते है...................
क्यों नहीं समझते हम कि अंध विश्वाश में जीते है..................
अरे बुजदिल है हम कि एक बिल्ली से डरते है .......................
आ गया शेर सामने तो सीधे हार्ट अटेक का जर्क है.................
अब कौन बताये उसको .......................................................

टीवी पर जो दिखता उसने कई परिवार तोड़ दिए...................
टीवी कि कलह अब घर में आ गई........................................
बेटे ने बाप से और पत्नी ने पति से मुह मोड़ लिए...................
अब कौन समझये भाग्यवान को कि सक मत करो...............
दफ्तर आते जाते उसपे नजरे मत रखो.................................
अरे वो तुम्हारा पति है तुम्हारा ही रहेगा................................
मैडम टीवी के रिश्तों में और घर के रिश्तों में जमीन आसमान का फर्क है...
अब कौन बताये उसको........................................................

जिस्म,मर्डर जैसी फिल्मे क्या दिखाना चाहती है... ................
बचता क्या है छुपाने को सुंदरिय सब कुछ दिखा जाती है........
घर वालों के सामने हम इस नग्नता को नहीं देख सकते.........
डर लगता है कंही बटन न दाव जाये रिमोट कि जम से...........
अरे क्यों बेंच खा रहे हो हमारी सभ्यता और संस्कृति को........
क्या रह जायेगा अंतर हम्मे और गोरों में...............................
अब कौन बताये उनको कि भारत और इंडिया में बस यही फर्क है.....

अब कौन बताये उसको सत्य और असत्य में क्या फर्क है.......

Thursday, April 8, 2010

अब जागो नहीं तो कब जागोगे...
सब मिट जायेगा क्या तब जागोगे...
और कितने को तिरंगे में लिपटा देखना चाहते हो...
बहेंगी खून कि नदिया क्या तब जागोगे...

उसकी बीबी देख रही थी राह... हाथो में थाल लिए...
आँखों में सपने सजाये... अपने दो बच्चो को साथ लिए...
पर खबर आई कि पति वतन पर हो गया शहीद...
पूछ गया माथे का सिंदूर अब न रहा मेरा वहीद....
अरे सफ़ेद पोसों अब तो जागो...
मरवा दोगे हर वाहिद को क्या तब जागोगे...
बहेगी खून कि....

नेता का बेटा अगर मरता तो क्या ये स्थिति होती...
सायद आज सारी फोज सीमा पे खड़ी होती...
अरे उस माँ का दर्द कौन समझता है...
जिसकी गोद में उसके जवान बेटा का शब् रखा है...
बस मरने के नाम पर बाँट दिया पैसा कर दिया सलाम ...
पंहुचेगा नक्सल राजधानी क्या तब जागोगे...
बहेगी खून कि...

बहन कि राखी सुनी कर दी...
अब बो कुछ नहीं बोल रही है...
मानो जैसे काठ कि पुतली बनकर सुख गई है...
एक लोता भाई था उसका... कहा था तुझे डोली में बठाऊंगा...
पर अब उसकी लाश उसके सामने पड़ी है...
और कितनी बहनों को भाई से जुदा करोगे... क्या इसके बाद जागोगे...
बहेगी खून कि...

अरे बहुत हुई तुम्हारी राजनीती... अब भी बक्त है संभल जाओ...
उतारो सेना और नक्सल बाद मिटाओ ...
कंही देर न हो जाए... कदम उठाने में...
कब्ज़ा होगा उनका हमारे ठिकाने में....
राजनीती छोडो मोर्चा संभालो... क्या भारत माँ पर खून के छीटे पड़ेंगे क्या तब जागोगे...

बहेंगी खून कि नदिया क्या तब जागोगे...

Friday, April 2, 2010

मुझे मेरे घर के साथ अकेला छोड़ दो...

मुझे मेरे घर के साथ अकेला छोड़ दो...
क्योंकि यही मेरी पूंजी है॥
मेरे बाबुजी कि निशानी है... मेरी माँ कि सहेली है...

जिन्दगी भर मैंने तुमसे कुछ नहीं माँगा...
सिबा एक घोती और एक बक्त कि रोटी के...
मुझे मत ले जाओ इस घर से सात समंदर दूर...
भले ही खंजर उतार दो मेरे सिने में...
अरे जुडी है यादें मेरे बचपन से बुदापे से...
अरे ये सिर्फ घर नहीं जाननत है... तेरी माँ के साथो से सजी थाली है...

आई थी तेरी माँ डोली पर सबार होकर इसी घर में...
उठी थी उसकी अर्थी तेरे मेरे कंधे से इसी घर से...
चंद शब्द क्या पड़ लिए विदेश जाकर...
अरे तू भूल गया तेरी पढाई में लगा पैसा आया था इसी घर से...
अगर ये घर न होता तो मैं गिरवी क्या रखता...
आज तू खुश है बड़ा बाबु है... मत छीन मुझसे मेरी मौत कि जगह...
क्योंकि ये मुझे प्राणों से प्यारी है...

कागज के हम है... और कागज के तुम हो...

Tuesday, March 30, 2010

पत्रकारिता एक ज़माने में मिशन हुआ करती थी...तब व्यक्ति नहीं बोलता था उसकी कलम बोला करती थी...... और जबाब भी कलम दिया करती थी... सवाल पत्रकार नहीं खड़ा किया करता था बल्कि उसकी कलम सवालों कि बोछार करती थी और जिस पर सवाल उठा है उसे जबाब देने पर विवश होना ही पड़ता था...... पर आज स्थिति बिलकुल ही बदल चुकी है.... छोटा मुह और बड़ी बात... पर सच कहूँ तो चाँद कलम को पकड़कर अपना जीवन बनाने बालों ने से बेंच दिया है.और सत्य को बिना जाने समझे ब्रेअकिंग न्यूज़ और विजुअल दिखने कि होड़ में खबरों को तथ्य बिहीन कर दिया है..अगर तस्वीर जरा सी और साफ कर दूँ तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया जिसका मैं भी एक हिस्सा हूँ..वो इसके लिए दोषी है... आज मछली बाज़ार कि तरह चैनल है और सबको को अपना सामान बेचना है....शोर सरबा इतना है कि आज जनता का कान भी कुछ को सुनता नहीं और कुछ को देखता नहीं॥ पर एक सबाल ये है जिसे मैं उतने जा रहा हूँ कि क्या समाज के ठेकेदारों के हाथों हमने अपनी कलम बेंच दी है या बेचने कि पूरी तयारी कर ली है॥
क्या हम अपनी किसी रंजिस को अपने चैनल के जरिये भुना सकते है॥ क्या समाज के ठेकेदारों
के दिखाए रस्ते पर अब मीडिया को अपनी दिशा और दशा तय करनी होगी...आप सोचते होंगे कि मैं एसा क्यों कह रहा हूँ.... वो इसलिए क्योंकि आजकल एसा ही हो रहा है... क्योंकि हमने अपनी कलम कि जो बोली लगनी जो सुरु कर दी है... हालाकि मुझे इस धरा पर कदम रखे ज्यादा वक्त नहीं हुआ है..... महज १७ महीनो के छोटे से पर अनेकों
पहलुयों से रूबरू हुआ मेरा सफ़र आज मुझसे भी कई सरे सवाल पूछता है..मछली बाज़ार मैं आज हर कोई खड़ा है...
अपने अपने सामानों को बेंच रहा है.कुछ खबरों को दबा दिया जाता है और कुछ को पैसा मिलने के चलते चला दिया जाता है... यानि कि आप जितना बड़ा भी मुह खोलोगे उससे kanhi ज्यादा पैसा आपके मुह में दुश दिया जायेगा......
पता नहीं कितनी उम्मीदों के साथ हमें हमारे पुरखों ने इस विरासत को जिन्दा रखने के लिए हमारे हवाले किया था आज वो भी अपने निर्णय पर सर छुकाए बैठे है...
मैं फिलहाल राजधानी में एक चैनल मैं रिपोर्टर कि हेसियत से काम कर रहा हूँ.... और इस महीने मैंने जो देखा और सुना उसने मुझे झाग्छोर दिया मेरी आत्मा को अन्दर तक कापा दिया.... कि आखिर हो क्या रहा है... मेरा विश्वास कुछ नमी पत्रकारों पर से उठा दिया...... राजधानी रायपुर से लगे कुछ ही दुरी पर अटारी इलाके में अभी कुछ ही दिनों पहले आदिवासी बच्चों का आश्रम बल्गार्म को सिफत किया गया था...... ७ साल से चले आ रहे
इस आश्रम का अचानक एक वीडियो एक न्यूज़ चैनल में दिकाया गया जन्हा आश्रम संचालक को एक बच्ची बेचते हुए दिखाया गया..... वो कितना सच था कितना नहीं इस बारे मैं मेरी राय जानने से पहले आपको एक और सच से रूबरू कराना चाहता हूँ........वो ये कि जिस चैनल में ये पूरा स्टिंग ऑपरेशन दिखाया वो उसने खुद नहीं बल्कि एक समाज सेवी उस संगठ के साथ बनाया जिसे लोग रायपुर में दलाल कहते है... मैं उसका नाम नहीं लेना चाहता......
क्योंकि वो खुद को समाज का ढेकेदार बताता है... और कहलवाने पर विस्वाश करता है... मैंने इस वीडियो को देखा और सुना जिसमे इस बात का कंही पर भी जिक्र नहीं है कि आश्रम संचालक नारायण राव ने बच्ची को बेंचा है....... जबकि उससे इस बात को बुलवाने कि कोशिश कराइ जा रही थी कि वो पैसा मांगे... हर बार उसे उकसाया गया...... पर नारायण राव ने कंही अपनी जुबान नहीं खोली... समाज के ठेकेदारों कि इस चाल को नारायण राव समाज नहीं पाया और उसने बच्ची उनके हबाले कर दी... नारायण राव ने सिर्फ इतना कहा कि उसे पीछे बाले कमरे का सीलेप पद्वाना है जिसके लिए वो राशी देंगे तो अच्चा होगा..आपको बता दे कि नारायण राव ने इसी आश्रम से ५ बच्चो को पहले भी गोद दिया है... और उसने पुलिस के सामने अपना व्यान दिया है कि वो हर बार पैसा लेता रहा है... क्योंकि उसे आश्रम चलने कि पैसों कि दरकार है... आश्रम में ५२ बच्चे पल रहे है... उनका काना पानी,पढाए लिखी का खर्चा कान्हा से आएगा अगर वो दान नहीं लेगा... नारायण राव ने विश्वास में बच्ची उनके हबाले कर दी... ताकि वो बच्ची के स्वास्थ्य सम्बन्धी जाँच करवा ले और अगर संतुस्ट होते है तो बच्ची ये जाये... बिना कागजी कार्रवाही के उसने ये सब किया और बही उसकी गलती हो गई..और इसी में वो फस गया॥ या यूँ कन्हे कि फसा दिया गया... नारायण राव कि गिरफ्तारी हुई और वो जेल मैं है...पार ५२ बच्चे फिर से आनाथ हो गए है..कोई उनकी खबर लेने वाला नहीं है..यहाँ तक कि उन्हें अलग किया जा रहा है जो वो होना नहीं चाहते. पर बच्चो कि पीड़ा को समझते हुए कुछ रमन सिंह ने उनकी पुनरवास को टाल दिया है.......आपको जानकर आश्चर्ये होगा कि उन्हें उस आश्रम में भेजा जा रहा था जन्हा पर क्रिमिनल क्लास के बच्चे रहते है... क्या उन्हें बहा भेजना सही है...
मेरा इतना बताने का मतलब सिर्फ ये था कि दोषी कौन है वो नारायण राव जिसने ७ सालों से अपना सबकुछ इन बच्चो पर लुटा दिया... वो नारायण राव जिसने इन बच्चो को माता पिता कि तरह प्यार दिया॥ एसे मै इन बच्चो पर क्या बीत रही है... ये समाज के ठेकेदार क्या जाने..जिन्होंने पुराणी रंजिस को भुनाने के लिए ये पूरा प्लान बनाया... और इसमें सामिल किया हमें... यानि कि हमारी कलम को... जो कलम सच को दिखाती है... जो कलम इन्कलाब कि आबाज है..उसे पैसों के दम पर खरीद लिया गया... ये सवाल कोई छोटा मोटा नहीं है,,, और न ही भूल जाने बाला है... बच्चो का क्या होगा इसका जिम्मा तो सरकार उठा लेगी पर पत्रकारिता का क्या होगा जो घडी घडी बिकने लगी है..और हर कोई लालच लेकर खरीद रहा है... अरे भाई जीने से पहले इसे मत मरो. बरना सब समाप्त हो जायेगा... जब शीशा ही टूट जायेगा तो आइना क्या खाख देखोगे...

बिकने लगी कलम|

पत्रकारिता एक ज़माने में मिशन हुआ करती थी...तब व्यक्ति नहीं बोलता था उसकी कलम बोला करती थी...... और जबाब भी कलम दिया करती थी... सवाल पत्रकार नहीं खड़ा किया करता था बल्कि उसकी कलम सवालों कि बोछार करती थी और जिस पर सवाल उठा है उसे जबाब देने पर विवश होना ही पड़ता था...... पर आज स्थिति बिलकुल ही बदल चुकी है.... छोटा मुह और बड़ी बात... पर सच कहूँ तो चाँद कलम को पकड़कर अपना जीवन बनाने बालों ने से बेंच दिया है.और सत्य को बिना जाने समझे ब्रेअकिंग न्यूज़ और विजुअल दिखने कि होड़ में खबरों को तथ्य बिहीन कर दिया है..अगर तस्वीर जरा सी और साफ कर दूँ तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया जिसका मैं भी एक हिस्सा हूँ..वो इसके लिए दोषी है... आज मछली बाज़ार कि तरह चैनल है और सबको को अपना सामान बेचना है....शोर सरबा इतना है कि आज जनता का कान भी कुछ को सुनता नहीं और कुछ को देखता नहीं॥ पर एक सबाल ये है जिसे मैं उतने जा रहा हूँ कि क्या समाज के ठेकेदारों के हाथों हमने अपनी कलम बेंच दी है या बेचने कि पूरी तयारी कर ली है...

Tuesday, February 2, 2010

पत्रकारिता सिर्फ पैसा है... ?

मुझे अभी इ टीवी में काम करते हुए ज्यादा बक्त नहीं हुआ है.... पर तजुर्बे इतने हो गये है कि मैं पता नहीं क्यों बेहद दुखी हूँ और चिंतित भी पत्रकारिता को लेकर... कि आखिर हम कर क्या रहे है... चलिए अपने एक तजुर्बे से अबको बाकिफ करता हूँ...... आज यानि कि ०२ फरबरी को मुझे राजिम जो रायपुर से ५० किलोमीटर है बहा जाकर लाइव करने का मोका मिला... मैं गया तो था बहुत कुछ सोचकर पर पता नहीं क्यों जो सोच उससे बिलकुल अलग हुआ॥ मुझे लगा था कि बहा पर कुछ मीडिया के बंधू तो होंगे पर कोई नहीं था..सिर्फ मैं और मेरे साथ इ टीवी के कुछ साथी कुछ देर तक तो सब ठीक चलता रहा॥ तभी एक प्रादेशिक चैनल का रिपोर्टर मेरे पास पंहुच और बोला कि पकेज मिला है क्या... पहले तो मैं समझा नहीं... उसने दुबारा दोहराया कि जनव पकेज मिला है क्या... मैंने कहा कि नहीं तो बोला कि बिना पकेज के कोई क्यों लाइव करेगा...यानि कि आप समझ गए होंगे कि आजकल पर्त्रकारिता क्या हो चली है... जन्हा देखो सिर्फ पकेज कि बाते,... मुझे लगा कि उसने जो सोचा वो सही था.... कुछ भी गलत नहीं था क्योंकि हम पकेज कि भूखे हो चले है... और उसके येबज में अपनी कलम बेंच चुके है....... मुझे कहते हुए जरा भी दुःख नहीं होता कि आज कि पत्रकारिता बिकाऊ है...जन्हा तक सवाल है मेरे चैनल का तो वो मेरी नजर में बिकाऊ नहीं है.... हर कोई चैनल चलने कि लिए पैसा चाहता है... पर हमारा मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं है बल्कि जो है उसे दिखाना भी है...

ये तो एक बाक्य था... पर हकीकत यही है...फिर चाहे चुनाव हो या कोई सरकारी आयोजन सब में मीडिया उस कुत्ते कि तरह भागती है... जिसे कंही पर पड़े हुए मांस कि महक आती है..... सवाल जायद बड़ा नहीं है पर गंभीर है वो ये कि आखिर हिंदुस्तान कि पत्रकारिता किस दिशा पर चाल रही है॥ आज भी कुछ अखवार और मीडिया हाउस है जो अपने सिधांत पर कायम है और इन्ही चाँद कि बजह से आज पत्रकारिता जिन्दा है... आज अख़बार में विज्ञापन को पहले समाचारों को बाद में तर्जिब दी जाती है..भले ही उसकी महत्ता विज्ञापन से ज्यादा क्यों न हो...अगर सम्पादक सही है तो जनाव चार कोलोम कि खबर एक कोलोम में कर देता है... पर विज्ञापन से नो कम्पोर्मैज़े... .आजकल तो एक और प्रात है..कभी समाचार पत्र का पहला पेज उसका आइना होता था पर आज बही पेज विज्ञापन कि भेट चढ़ जाता है... और दूसरा पेज होता हो समाचार का... यानि साफ़ हो कि विज्ञापन के लिए साला कुछ भी करेगा.......