Tuesday, March 30, 2010

बिकने लगी कलम|

पत्रकारिता एक ज़माने में मिशन हुआ करती थी...तब व्यक्ति नहीं बोलता था उसकी कलम बोला करती थी...... और जबाब भी कलम दिया करती थी... सवाल पत्रकार नहीं खड़ा किया करता था बल्कि उसकी कलम सवालों कि बोछार करती थी और जिस पर सवाल उठा है उसे जबाब देने पर विवश होना ही पड़ता था...... पर आज स्थिति बिलकुल ही बदल चुकी है.... छोटा मुह और बड़ी बात... पर सच कहूँ तो चाँद कलम को पकड़कर अपना जीवन बनाने बालों ने से बेंच दिया है.और सत्य को बिना जाने समझे ब्रेअकिंग न्यूज़ और विजुअल दिखने कि होड़ में खबरों को तथ्य बिहीन कर दिया है..अगर तस्वीर जरा सी और साफ कर दूँ तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया जिसका मैं भी एक हिस्सा हूँ..वो इसके लिए दोषी है... आज मछली बाज़ार कि तरह चैनल है और सबको को अपना सामान बेचना है....शोर सरबा इतना है कि आज जनता का कान भी कुछ को सुनता नहीं और कुछ को देखता नहीं॥ पर एक सबाल ये है जिसे मैं उतने जा रहा हूँ कि क्या समाज के ठेकेदारों के हाथों हमने अपनी कलम बेंच दी है या बेचने कि पूरी तयारी कर ली है...

1 comment:

  1. ....प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!

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