Wednesday, June 30, 2010

वाह रे ननकी राम...जवान मर रहे हर बार...

नक्सलवाद का तोड़ धुड़ना तो दूर कि बात है हम तो सिर्फ हर हमले के बाद अपने जवानो के शव गिनते रह जाते है... जी है जब से नक्सलवादियों ने अपनी बन्दुक उठाई है एसा बहुत कम ही हुआ है कि हमें नक्सालियों के शब् मिले हो.... और मिल भी कैसे सकते है क्योंकि वो तो मरते भी है और अपने साथियों के शव ले भी जाते है... एसे में ये क्याश लगाया जाना कि नाक्साली मारे गए बहुत बड़ी भूल है... जी है ये बही बात है जिससे आज तक हमारी सरकारे खुद को दिलाशा देती आ रही है... महज तीन महीनो में हमने अपने १५० से ज्यादा जवान खो दिए... और हमें हाथ लगा क्या सिर्फ और सिर्फ नाकामयाबी... पर इस असफलता से आज तक हमारी सरकारों ने कोई सबक नहीं लिया और ये तो इस बात कि गारंटी भी नहीं लेते कि अब नाक्साली हमले में जवान नहीं मारे जायेंगे... हेरानी कि बात तो ये है कि कल जब नाक्साली हमला हुआ तो हमारे देश के गृहमंत्री पूजा में व्यस्त थे... वाह रे ननकी राम जवान मर रहे हर बार॥
एक के बाद एक नक्सालियों का कहर इस राज्य में टूट रहा है... हर चालीसवे दिन एक बड़ी घटना से पूरा देश देहल जाता है और उस घटना के बाद राज्य के मुखिया बैठक बुलाते है... सुबह वाही सिलसिला... जवानो कि छाती पर फूल रख दिया जाते है नमन कर लिया जाता है... गार्ड ऑफ हौनौर दिया जाता है... उसके बाद मंत्री अपने काम में लग जाते है... अरे भाई कोई ये तो बताओ कि हम हर बार जब इतना कर सकते है तो क्या एक बार शांत दिमाक से ये नहीं सोच सकते कि अब नक्सालियों को ख़त्म करना है... अब आर पार कि लड़ाई लड़नी है... इन नेताओ में सिर्फ सियासी रोटिया सकने कि कूबत है इससे ज्यादा कुछ नहीं... चलिए हम आपको राज्य के गृहमंत्री ननकी राम कंवर साहब कि बात बताते है ... कल शाम ७ बजे तक इस बात कि पुष्टि लगभग हो चुकी थी कि हमारे काफी संखिया में जवान मारे गए है... जब मीडिया प्रतिक्रिया लेने साहब के दरवाजे पर पंहुचा तो पता चला कि ननकी राम कंवर पूजा में धियान मग्न है... आपको ये भी बताये कि मुखमंत्री रमन सिंह के निवास पर उसी समय बैठक थी जिसमे इन जनाव को शामिल होना ही था... पर कंहा ये तो थे भक्ति में लिप्त... भक्ति भी एसी कि २६ जवान शहीद हो गए और ननकी राम... राम राम करने में लगे हुए थे... पर जब मीडिया ने इस खबर को उझला तो सिर्फ लाल बत्ती लगी सिंगेल गाडी में पहुचे सीधे सीएम निवास... मुस्किल से १० मिनिट के बाद निकल आये... ये तो दशा है उस राज्य कि जन्हा नाक्साली तांडव कर रहे है और हमारी सरकार के सबसे बड़े पोस्ट पर कविज गृहमंत्री पूजा कर रहे थे... भला क्यों कैसे उन जवानो का मनोबल ऊपर करे...
इस बिडम्बना कहे या फिर भूल समझ नहीं आता... पर आज जरुरत आ गई है कि जबाब देना चाहिए... लगता ही कि सरकार इस बात का इन्तेजार कर रही है कि जब दुश्मन दरबाजे पर आएगा तब हथियार उठाएंगे... बड़ा दुःख होता है कि न तो राज्य सरकार कुछ कर रही है न केंद्र कुछ कर रहा है... सब मीडिया में बयां देने हर घटना के बाद चले आते है मुह उठाकर... सबाल ये है कि आखिर कर रुकेगी ये नाक्साली वारदाते॥ आखिर कब तक माटी लाल होती रहेगी... कब तक आदिवासियों कि दुहाई देकर नक्सालियों से सामना करने से कतराएगी सरकार... क्यों नहीं उतरती सेना... अब बक्त आ गया है... कि कमान सेना के हाथ में देकर इस समस्या का समाधान निकाल लिया जाये... पर हमारे हुक्मरान का कहना है कि अभी बक्त नहीं आया है... अरे अगर अभी बक्त नहीं आया है तो क्या सोकड़ो लाशो को देखने कि इक्छा है कि... तब जाकर कुछ कार्रवाई होगी... अरे ये लोग नहीं सुधरने बाले इन्हें तब तक समझ नहीं आएगा जब तक कोई इन सबसे बड़ी वारदात नहीं होगी... सबाल ये है कि आखिर चुक कहा हो रही है... क्यों जवान नक्सालियों के बिछाए जाल में फँस जाते है... क्या हमारा खुफिया तंत्र पूरी तरह से नस्ट हो चूका है... इस बात को रायपुर सीआरपीएफ आईजी ने स्वीकार किया है... अगर एसा है तो क्यों जवानो को मौत के मुह में धकेला जा रहा है... लगता है कि सरकार का न तो दिल काम कर रहा है न दिमाक....
इन्हें हाथो में चुडिया पहिनकर बैठ जाना चाहिए... पर इनसे ये भी तो नहीं होगा... आज हमें आवाज उठानी होगी और इन सोये लोगो को जगाना होगा... अब ये जनता का दयित्ब हो गया है...

Saturday, June 26, 2010

एक खोइस..... मेरी भी..

आओ बैठो पास मेरे तुम्हे देखना है............
तुमसे बाते करना है जी भर के मिलना है...

पहली मुलाकात में तुमसे मोहबत हो गई...
तुम चलो साथ मेरे तुमसे कहना है.............

क्यों मिले हो मुझे तुम क्या ये तोफा खुदा का है...
सुक्र है तेरा खुदा ये उससे कहना है......................

जब भी आँखे बंद हो तू नजर आये मुझे.......
अब इस हकीकत को मुझे सच जो करना है...

कहते है उम्मीद पे दुनिया चलती है..........
तुमको पाना खोइस तुम बिन न रहना है...

Sunday, June 13, 2010

कुछ मेरी...

१.॥ तेरी जुबान से मेरा नाम उसने ही मिटाया होगा
पता है वो कोई गैर नहीं मेरा अपना होगा...
जो जनता है मैं तुझसे मोह्बात करता हूँ...
सायद उसी दोस्त ने तेरे दिल में अपना घर बनाया होगा...

२.॥ यूँ तो लोग कहते है प्यार हर इंसान को होता है...
दिल हर किसी का धडकता है...
मेरे मोहल्ले के एक दादा को भी इश्क हो गया...
क्योंकि किसी ने कहा है कि दिल बच्चा होता है...

३.॥ तोड़ दो मंदिर तोड़ दो मस्जिद और बना दो मधुशाला...
मुस्लिम बैठ कर पिये मधुशाला में हिन्दू छलकाए पियाले पर पियाला...
सरत है मेरी न होगा दंगा न होगा पंगा अमन चैन कायम होगा...
ईद मानेगी हिन्दू के घर दिवाली दिया मुस्लिम घर होगा...
पर कौन सुनता मेरी सब लगे है अपना उल्लू सीधा करने...
जन्हा से आये जितना भी आये लगे है सब जेबे भरने...
कुर्सी के पुजारी ने अब धर्म का दमन थम लिया...
कोमी भाषण देकर सिम्पेथी वोट हथिया लिया...
गलती उनकी नहीं वो तो खरीदने खड़े है...
हम है जो बिकने खड़े है...
अब भी बक्त है सभाल जाओ...





Saturday, June 12, 2010

त्रासदी पर त्रासदी..........

त्रासदी पर त्रासदी लगता है भोपालवासियों के लिए येही देखना और सुनना बचा हुआ था... २५ साल पहले एक गोरे ने २५ हज़ार लोगो को मौत के आगोश में दफ़न कर दिया... और २५ सालों बाद जब फिर से भोपाल गैस कांड कि किताब खुलनी शुरू हुई तो देश इस कांड पर दूसरी त्रासदी से बाकिफ हो रहा है कि किस तरफ हमारे देश के कुछ लालची और गद्दार नेताओं ने किस तरफ इस गुनाह के असली मुजरिम को देश से बाहर निकलने में अहम् रोल अदा किया... अब पूरा देश इन नेताओ से जबाब मांग रहा पर न जाने ये किस मियाँद में दुबके बैठे हुए है... जिनमे सबसे ऊपर नाम है कांग्रेस के वरिष्ट नेता और वर्तमान में मध्यप्रदेश के मुखिया अर्जुन सिंह का... और इसमें राजीव गाँधी का नाम भी दावी जुबान में सबूतों के आधार पर लिया जा रहा है...
आज से ठीक २५ साल ६ महीने और २६ दिनों पहले अब तक कि सबसे बड़ी ओदियोगिक त्रासदियों में गिनी जाने वाली भोपाल गैस त्रासदी के बारे में अगर बन्हा के लोगो से जिक्र करने बैठ जाये तो लोगो के आंसू आज भी झर झर बहने लगते है... पर वो लोग क्या जाने जिन्हें सिर्फ और सिर्फ इतना पता था कि किस तरह इस कांड के मुख्य आरोपी voren andorson को जल्द से जल्द देश से बाहर निकलना है... २ दिसम्बर १९८४ को हुए इस कांड के एक दिन बाद दुरसे दिन गैर जमानती धारा लगने के बाद भी andorson को जमानत मिल गई और उसे भोपाल से निकलने के लिए लाल बत्ती वाली ambesdor कार जिसे खुद भोपाल के तात्कालिक एसपी स्वराज्पुरी चला रहे थे और जिसमे कलेक्टर भोपाल मोती सिंह बैठे हुए थे... कार सीधे एअरपोर्ट पहुची और बहा खड़े विमान से voren andorson को दिल्ली भेज दिया गया... और वो बन्हा से अपने बतन चला गया... २५ हज़ार मौतों के कसुरबार को सरकारी मेहमान नवाजी के साथ इस तरह देश से बाहर सुरक्षित भगा देना समझ से परे है... यंहा पर सवाल तात्कालिक केंद्र सरकार और मध्यप्रदेश कि सरकार दोनों पर उठ रहा है... क्योंकि सरकार का विमान बिना मुख्यमंत्री के इस्तेमाल नहीं किया जा सकता तो क्या अर्जुन सिंह ने विमान उपलब्ध कराया... क्या अर्जुन सिंह ने स्वर्गीय राजीव गाँधी के कहने पर एसा किया... एसे सवाल है जिनके जबाब २५ हज़ार लोगो के परिजन आज मांग रहे है जिनके अपने बिना बजह मारे गए...
अभी कुछ ही दिन पहले भोपाल जिला कोर्ट ने इसी कांड से जुड़े ७ आरोपियों को सजा सुने थी महज २ साल कि पर वो सारे के सारे जमानत पर महज २ घंटों में छुट गए... एसे में क्या हमारी न्यालिन प्रक्रिया ही एसी है कि हर मुजरिम बच के निकल जाता है और बेचारे इंसाफ के लिए रास्ता देख रहे लोगो कि आखे पथरा जाती है... जब कौर्ट का निर्णय आया तो ये भोपाल गैस पीडितो के लिए दूसरा सबसे बड़ा झटका था... पर इतना सब कुछ हो जाने के बाद आज भी क्यों नहीं अर्जुन सिंह सामने नहीं आ रहे कि आखिर किन परिस्थितियों में उस व्यक्ति को छोड़ा गया था क्या उनकी छुप्पी ये सवित कार रही है कि वे गुनेहगार है... पर जिस तरह से अर्जुन से के खिलाफ मीडिया में खबरे आ रही है उससे कांग्रेस का चेहरा कुछ एसा दिखाई दे रहा है... कि वो अर्जुन से कन्नी काट रही है... एसे में देखना दिलचस्प होगा कि किस तरह से इस पुरे मामले से पर्दा उठता है... क्योंकि इसमें अर्जुन सिंह का निपटना तय ही माना जा रहा है... देखने वाली बात ये होगी कि कितनी जल्दी गैस पीडितो को इन्साफ मिल पता है... क्योंकि अब बक्त आ गया है कि इन लोगो के साथ दुबारा कुछ एसा न हो जिससे इनका भारतीय कानून और दंड व्यवस्था से विस्वाश उठ जाये...
आपको पता ही होगा कि आज भी भोपाल में लोग अपांग पैदा होते है... कुछ लोग एसे है जो आज भी जीवित है और उस त्रासदी का दंश झेलने पर मजबूर है... कोर्ट के जजमेंट के बाद एक एक कर जो पन्ने इस कांड से जुड़े हुए पलटे जा रहे है उससे साफ है कि कुछ और चोकने वाले नाम सामने आ सकते है... इस कांड ने न जाने कितने घर तवाह कर दिए... कितनो को बेघर कर दिया... पता नहीं पर लोगो को इतना पता है कि उन्हें इंसाफ चाहिए... जाहे जैसे भी मिले... जब ये कांड हुआ तो सडको पर लाशो के ढेर लग गए थे... रोज तड़फ के लोग दम तोड़ रहे थे... दफन करने के लिए जगह कम पड़ रही थी... लोगो को एसे ही जलाया जा रहा था... क्योंकि महामारी फैलने का अंदेशा था... जिन मुस्किल परिस्थितियों से भोपाल गुजरा है उसके बारे में सोचकर भी लोगो कि रहे काँप उठती है... उस बक्त जिन लोगो ने वो खोफ नाक मंजर देखा वो आज भी उसे याद कर देहेल जाते है... पर क्या हमारी सरकार एसे गुनेह्गारों का कुछ नहीं बिगाड़ सकती... varen andorson जिन्दा होने के बाद भी भारत नहीं लाया जा सकता... मेरे खियाल से अब मुमकिन है पर करना कोई नहीं चाहता अगर हमारी जगह अमेरिका होता और वंहा पर ये त्रासदी हुई होती तो अब तक वो सब कुछ मटियामेट कर चूका होता वारेन को पकड़ने के लिए... आपने तो देखा है कि किस तरह उसने इराक को निस्तेनाबुत कर दिया... पर भारत क्यों और किन कारणों से पीछे है... सवाल सिर्फ इस बात का है... हमें पता है कि आरोपी इस जगह छुपा बैठा पर हम फिर भी उसे नहीं पकड़ पा रहे तो इसमें कही न कंही सवाल हम पर भी खड़ा होता है...हमें इसका जवाब जल्द ही खोजना होगा कंही भोपाल के लोग अपना आपा न खो दे...

Tuesday, June 8, 2010

राजनीती-पांच में से तीन अंक..

प्रकाश झा जैसे निर्देशकों से जनता बेहद ही उम्मीद लगाये रहती है पर जब उन उम्मीदों पर पानी फिर जाये तो क्या कहेंगे..अपहरण,गंगाजल जैसी जबरजस्त फिल्मे दे चुके प्रकाश झा ने राजनीती के गलियारों से जुडी फिल्म राजनीती जनता दरबार में पेश कि हालाकि फिल्म को अच्छी सुरुआत मिली है वो सिर्फ इसलिए कि सिनेमा घरों तक फिल्म आने से पहले शुर्खिया जो बटेर चुकी थी... फिल्म जिस जिवंत मुद्दे को धियान में रखकर बनाई गई है वो अच्छी सोच है और फिल्म कि कहानी भी विल्कुल सही दोड़ती है... पर फिल्म में कुछ ज्यादा ही ओवर जिसे कहते है वो साफ झलकता है... फिल्म में मनोज बाजपयी के अलावा किसी ने दमदार किरदार नहीं अदा किया...
फिल्म को आज कि महाभारत कहे तो जरा भी अतिस्योगती नहीं होगी... फिल्म में जो कुछ भी दिखाया गया है वो काल्पनिक नहीं बल्कि बास्तव में वेसा होता है... कहानी एक परिवार कि है एक इसे राजनितिक परिवार कि जिसके हर सख्श का मकसद सिर्फ गद्दी हासिल करना होता है... फिर उसके लिए किसी अपने कि हत्या भी क्यों न करनी पड़े... फिल्म कि सुरुआत बाप बेटी के बीच के तकरार से होती है... बाप अपनी पार्टी के लिए जीता है तो बेटी एक कमुनिस्ट के साथ उसकी विचारधारों से मोहित हो कर बाप से दूर हो जाती है पर भारती कमुनिस्ट पर एसी मोहित होती है कि वो अपना शारीर भी उसके सुपूर्त कर देती है... पर जब इसका इह्सास उस कमुनिस्ट को होता है तो वो पश्चाताप कि अग्नि में जल जाता है और बहुत दूर चला जाता है भारती एक बच्चे को जन्म देती है पर उसका भाई जिसका किरदार नाना पाटेकर ने निभाया है वो बदनामी के चलते उसे नन्ही सी जान को दूर छोड़ देता है पर बही बच्चा उसी राजनितिक घराने के एक बर्षो पुराने ड्राईवर के यंहा पलता है जो बड़ा होकर सूरज बनता है जिसका किरदार निभाया है अजय देवगन ने... जो दलित के लिए जीता है... इधर राजनितिक परिवार यानि कि पार्टी के अध्यझ को लकवा मार जाता है... तो कर्रकारी अधय्झ के रूप में भानुप्रताप को गद्दी मिल जाती है पर भानुप्रताप का भतीजा वीरेंद्र प्रताप सिंग जिसका किरदार मनोज बाजपयी ने निभाया है... उसके अन्दर कि ज्वाला भड़क उठती है और यंही से शुरू होता है महाभारत का संग्राम... भानुप्रताप कि गोली मार कर हत्या कर दी जाती है... तो विरेंद के पिता भानुप्रताप के बड़े बेटे प्रथ्विप्रताप को उतरादिकारी बना देते है... बनही पार्टी के अन्दर टिकेट को लेकर उठापटक चलती है... सूरज को विरेंद का सपोर्ट मिलता है भानुप्रताप कि मौत के पहते अपने दादा के जन्म दिन पर भानुप्रताप का छोटा बेटा जो विदेश में पीएचडी करता है हिंदुस्तान आता है... पर पिता कि मौत उसे यंही पर रोक लेती है या यूँ कहे कि राजनीती में वो भी उलझ जाता है... फिर राजनीती के दाव पेंच चलते है... आरोप प्र्तायारोप लगये जाते है... खून खराब होता है... दोनों दल के लोगो को ख़रीदा जाता है... वो सब कुछ होता है जो कुर्सी के लिए किया जा सकता है या यूँ कहे कि इंसान मरियादाये... इंसानियत... रिश्तेदारी... खून के रिश्ते सभी कि भूल कर सिर्फ कुर्सी के लिए जीता है... एक एक कर सब मरे जाते है... पृथ्वी मारा जाता है समर कि प्रेमिका जो विदेश से आती वो राजनीती का शिकार होती है... पृथिवी के मारे जाने के बाद पार्टी के लिए नया मुख्मंत्री का दावेदार कौन हो तभी नाम आता है इंदु का... पृथ्वी के वेवा और समर से मोह्बात करने वाली इंदु चुनाव में कड़ी होती है... पर सबसे बड़ा रोड़ा होता है विरेंद और सूरज जिन्हें मारने के लिया समर रचता हा साजिश... और पहले विरेंद को मरता है और फिर अपने भाई सूरज को जिसके बारे में वो नहीं जनता कि वो उसका ही भाई है... और येन्ही ख़त्म होती है राजनीती इंदु प्रथ्वी प्रताप बन जाती है मुखमत्री... आपको बता दे कि सोनिया गाँधी के रोल से मिलता हुआ चेहरा जरुर केटरीना कैफ उर्फ़ इंदु में दीखता है पर रोल दमदार नजर नहीं आता...
ये तो थी फिल्म कि कहानी... पर फ़िल्म में गाने का न होना और पीछे ka मुजिक भी दमदार नहीं है... आपको बता दे कि फ़िल्म कि कहानी जोरदार है इसके आलावा निर्देशन में कुछ कमिया नजर आई... एसे में इस फिल्म को पांच में से सिर्फ ३ अंक ही मिल सकते है... फिल्म एक बार देखने लायक है...

Sunday, June 6, 2010

देश के गदार... को फांसी दो...

नक्सलवाद आज देश कि सबसे विकराल समस्या है... जाने इस खूंखार दानव ने अब तक कितने बेगुनाहों को मौत के घाट उतर दिया..बाबजूद इसके कुछ लोग है जो आज भी उनकी वकालत करते है..एसे में इन लोगो को देश का गद्दार कहने में मुझे जरा भी झिझक नहीं होती... और हो भी क्यों क्योंकि में जिस माती में जनमा हूँ उसकी तरफ उठने वाली हर निगाह मेरे लिए किसी दुश्मन से कम नहीं... पर न जाने हमारे देश कि सरकार को क्या हो गया है वो आज क्यों मौन है जब एक लेखिका कहती है कि वो नक्सलवाद का समर्थन करती है... अभी कल कि ही बात है कि मुंबई में दिए अपने एक बयान में जानी मानी लेखिका और अपने को समाज सेविका कहलवाने वाली अरुंधती रॉय ने एक मंच पर ये कह दिया कि वो नक्सलवाद का समर्थन करती है अगर सरकार उन्हें इसके लिए जेल में डाल दे तो वो जेल जाने को तैयार है... यानि ये देश कि सरकार को खुला चैलेन्ज है... पर हमारे देश कि सरकार तो माशा अल्ला है वो कुछ नहीं करती.. पर इस बयान ने मुझ जैसे देश के सपूत के अन्दर उसके प्रति नफरत जरुर भर दी है॥
उस माँ से पूछा है क्या अरुंधती राय ने जाकर कि उसके बेटे के मारे जाने के बाद उस पर क्या बीत रही है... उस बहिन से पूछा है कि उसकी राखी का क्या होगा... उस मासूम से पूछा है क्या उसके बाप कि मौत के बाद उससे सहारा कौन देगा... उस पत्नी से पूछा है क्या विधवा होने का दर्द क्या है... अगर इन सवालों के जवाब मैडम आपके पास है तो आप नक्सालियों का सपोर्ट कर सकती है... मुझे जरा भी तकलीफ नहीं होगी पर आपने जो कहा है उसने बर्षो पुराने जख्मो को फिर से ताज़ा कर दिया है... ये हिंदुस्तान है इसलिए आप अभी तक बची हुई है बरना कब कि सलाखों के पीछे होती... मुझे सीजी के गृहमंत्री का वो बयान अच्छा लगा उन्होंने साफ कहा कि अगर अरुंधती या उस जैसी कोई भी हस्ती हमारे प्रदेश में होती तो उस पर अब तक कार्रवाई हो चुकी होती फिर उसके दूर गामी परिणाम जो होते तो होते... ननकी राम ने यंहा तक इशारा कर दिया कि केंद्र सरकार कार्रवाई करे... पर जनाव हमारे हुक्मरान बड़े दरिया दिल है उनकी दरिया दिली का ही नतिया है कि आज दुश्मन हमें मारे जरा है और हम मार खाते जा रहे है...
आज बक्त आ गया है कि देश में छुपे गदारों को गिरफ्तार कर नक्सालियों कि लाइफ लाइन बंद कर दी जाये... मैं किसी पर इल्जाम नहीं लगा रहा पर आज इतना तो साफ हो गया है कि अरुंधती जैसी सक्सियत हो नक्सालियों को सपोर्ट करती है... हमारी जानकारी नक्सालियों तक कैसे पंहुचती है इसका जवाब भी ये ही है... हमारे देश के लोगो को चाहिए कि वो जागे और सोई हुई सरकार को जगाने के लिए आन्दोलन करे क्योंकि ये मामला कोई छोटा मोटा नहीं है बल्कि सवाल है देश का... नक्सालियों को आज हमारी हर पल कि खबर कैसे लग जाती है... कैसे वे जान जाते है कि हम कान्हा से जाने वाले है... देश के एक बुद्धिजीवी का दल रायपुर आया हुआ था उनका कहना था कि वो नक्सालियों से बात चित कर बीच का रास्ता खोज रहा है... ताकि कोई हनी न हो... पर क्या बताये आज देश में इन बुद्धिजीवियों के कारण ही हम नक्सालियों के हाथो हर मोर्चे पर मात खा रहे है... एसे में सवाल ये उठता है कि क्या ये देश के गदार नहीं... क्या इन्हें कसाव कि तरह फांसी कि सजा नहीं सुनानी चाहिए.... कसाव ने तो अपने आकायों के कहने पर दुसरे मुल्क पर हमला किया ये तो अपने मुल्क के होकर हमारी पीठ पर ही खंजर उतर रहे है... सोचना होगा... कि क्या एसे लोग किसी आतंकबादी से कम है क्या... इन्हें भी मौत कि सजा मिलनी चाहिए...