Monday, October 17, 2011

पुजारी को बनाया 'मदकू द्वीपÓ का गार्ड


डी बी स्टार, रिपोर्टर प्रशांत गुप्ता के साथ दिलीप जायसवाल
--------------------------------------------------
संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय के जिम्मेदारों की लापरवाही मदकू द्वीप के पुरातात्विक धरोहरों की सुरक्षा पर सेंध लगा सकती है। वहीं दूसरी तरफ उत्खनन में निकले पुरा अवशेषों के साथ छेड़छाड़ करने जैसे गंभीर आरोप भी लगने शुरू हो गए हैं। यह वही जगह है जहां के उत्खनन का जिम्मा सिरपुर स्थित उत्खनन साइट के सुपरवाइजर के नाम जारी कर दिया गया था।

डीबी स्टार टीम राजधानी से 85 किमी. दूर रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर स्थित मदकू द्वीप की वास्तविक स्थिति का जायजा लेने पहुंची। खुलासा हुआ कि यहां संस्कृति एवं पुरातत्व संचालनालय की तरफ से सुरक्षा के लिए अब तक कोई बंदोवस्त ही नहीं किए गए। हद तो यह है कि ऐतिहासिक सम्पत्ति की सुरक्षा स्थानीय पुजारी कर रहे है, जिन्हें संचालनालय की तरफ से दैनिक वेतनमान दिया जा रहा है। वर्ष 2010-2011 में हुई खुदाई के दौरान यहां ११वी शताब्दी के स्थापत्य कला के पुरावशेष मिले हैं, जिनमें से एक भी साबूत नहीं थे। खुदाई का जिम्मा लेने वाले सुपरवाइजर प्रभात सिंह ने पुरात्तववेत्ता ए.के. शर्मा के साथ मिलकर इनके साथ छेड़छाड की। ऐसा इसलिए किया गया ताकि अवशेषों को मंदिर की शक्ल दी जा सके और संबंधितों को प्रसिद्धी मिले। मंदिर तो बना दिया गया लेकिन अवशेषों को कहीं का कहीं जोड़ दिया गया है। इस पर पुरातत्वेत्ताओं का कहना है कि खुदाई में मिले अवशेषों को उनकी मौजूदा स्थिति में ही रखा जाता है उनसे छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। वहीं यह तब संभव है जब साइट इंचार्ज के पास हू-ब-हू प्रमाण (तस्वीरें) हो या उसका लेख हो। टीम ने यहीं कुछ और पुरावशेषों को देखा जो मंदिर निर्माण से बच गए हैं लेकिन उन्हें अब तक सुरक्षित नहीं रखा जा सका है। पुरावशेषों को मंदिर की शक्ल तो दे दी गई, लेकिन अभी से इसके अवशेष उखडऩे लगे हैं। टीम ने इस संबंध में पुरातत्ववेत्ताओं और इतिहासकारों से बात की, उनका कहना है कि ऐसा करना तो नियमों के खिलाफ है। उधर विभाग के संचालक कह रहे हैं कि...................।


लाइव- 04 अक्टूबर को डीबी स्टार रिपोर्टर मदकू द्वीप पहुंचे। शिवनाथ नदी के बीचों बीच स्थिति होने के कारण इसे द्वीप कहा जाता है। जो करीब 70 एकड़ में फैला हुआ है। कुछ साल पहले स्थानीय लोगों द्वारा की जा रही खुदाई के दौरान साइट पर कुछ मूर्तिंया मिली, जिसकी खबर लगते ही पुरातत्व विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे और उत्खनन करवाया गया। टीम ने पाया कि खुदाई स्थल भले ही साफ-सुथरा हो लेकिन यहां किसी के भी आने-जाने में कोई रोक-टोक नहीं है। बड़ी आसानी से इस परिसर में दाखिल हुआ जा सकता है। पुरातत्व और इतिहास के लिए शोध का विषय यह स्थल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां ऐतिहासिक धरोहर है। टीम को मौके पर कुछ ऐसे भी अवशेष दिखाई दिए जो सुरक्षित नहीं थे। इस बारे में जानकारी जुटाई गई तो सामने आया कि इनके दूसरे हिस्से नहीं मिले हैं। उधर इस जगह की सुरक्षा के लिए महज तार की फेसिंग करवाई गई है लेकिन परिसर में अन्य पुरानी मंदिरों के होने की वजह से लोग यहां तक भी आ जा रहे हैं। सुरक्षा व्यवस्था के नाम पर न तो एक गार्ड है और न ही संचालनालय का कोई कर्मचारी। अगर इनमें से एक पत्थर भी चोरी जाता है, तो जवाबदारी किसकी होगी?