हाथों में रंग मल के तेरे गालों को गुलाबी कर दूँ...
पर अब वो रंग कंहा जो तेरे गालों पर चडेगा...
तेरी चुनर को रंगेगा... अब वो रंग कंहा.. ये मेरी जिन्दगी तेरे लिए...
१. मैंने एक दिन पहले से तैयारी कर ली थी...
कि सुबह होते ही निकल जाऊंगा उसकी गलियों में...
पर बता मेरे हम दम तू कंहा मिलेगी...
मैं देखता रहा ये ही सपना सारी रात... ये मेरी जिन्दगी तेरे लिए...
२. कुछ ने गुमराह किया कि वो नहीं आएगी...
कुछ बोले आ के चली गई इन्ही गलियों से...
पर बता ये मेरे दिल तू आएगी कि नहीं...
मैं बैठा रहा इन्ही रास्तों में सारी उम्र..... ये जिन्दगी तेरे लिए...
ज्ज़बात है...मेरे अंतर्मन का...कुछ कहने का...कुछ कर दिखाने का...ज्ज़बात है..मेरे बचपन का..मेरी जवानी का...मेरी पत्रकारिता का....ज्ज़बात है...मेरी कलम का...मेरी सोच का..मेरे हौसलें का..ज्ज़बात है...नयापन दिखाने का...ऊँची उड़ान का...सच के साथ चलने का...ज्ज़बात है..मेरे अपनेपन का....जो है...आपके साथ...आपके लिए...हमेशा....ज्ज़बात एक खबरनवीस का....
Friday, March 18, 2011
Friday, March 11, 2011
chand
roshni me nahaaya huaa aaj chaand najar aaya hai...
safed liwaj me lipta khidkiyan se mushkuraya hai...
najar na lage use isliye aankhen band kar leta hun...
band aankon se us tak mohbaat ka salaam pahuchaya hai...
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