Sunday, April 25, 2010

मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे.........

मेरी कब्र पर वो पहली बार आये है ......
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे.........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

उनकी उठ रही थी डोली जब बन्हा... मातम थे मेरे घर में खुसिया थी बहा...
अब मैं हूँ कब्र में... वो बाहर कड़ी यंहा...
बहा रही है आंसू... याद आ रहा खुदा.....
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

दोनों ने खाई थी कसमे मगर बहुत... मैंने तो निभाई पर उसने तोड़ दी........
जिन्दगी कि गाड़ी दो रहे पर रोक दी.......
उसकी बेवफाई ने हर लिया जी..............
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

सालों बीत गए अब आया है ख्याल... बच्चे है उसके चार और पति है दलाल...
मौत के बाद मेरी उठने लगे सवाल......
वो आई मेरी कब्र पर होने लगा बबल...
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

अब सरे राज फिर से खुलने लगे है... कब्र में प्यार के चर्चे सुनने मिले है..........
अब कौन समझये सबको हम यंही भले है...
तेरी लिए कब्र को मेरी ले जाने तुले है.........
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...

कब्र में भी हमको न मिल सका सुकून... मेहरवानी करना अब आना न रंगून....
बहुत हुआ अब बक्श दो सगुन...
तड़फ रही है न बताओ कानून....
मैं उठू कैसे... मैं सजदा करू कैसे..........
इन्ही कि बजह से हम कब्र में आये है...