Sunday, May 9, 2010

धरती पर खुदा है माँ...

दुनिया... और इस दुनिया में इन्सान का जन्म किसी किसी नारी कि कोख से हुआ होगा... यानि कि बिना किसी तर्क वितर्क के हमें स्वीकारना होगा कि माँ धरती पर खुदा का रूप है..... या मैं ये कहूँ कि माँ ही भगवान है तो कुछ भी गलत नहीं होगा... में बचपन से जितना पिता के करीब नहीं था उतना माँ के करीब रहाक्योंकि मुझे क्या हर सक्श को येही लगता होगा कि वो माँ से उन सब चीजो को सेयर कर सकते है जो वे पिता से नहीं कह सकते... क्योंकि माँ हर बक्त बच्चे के साथ रहती है वो पिता नोकरी पर चले जाते है... मेरे पिता पुलिस विभाग में कार्ररत है... पुलिसवालों कि नोकरी का कोई ठिकाना ही नहीं कब आते है कब जाते है पता नहीं... हम जब स्कुल कालेज में थे तो रात में पिता जी के आने के पहले सो जाया करते थे और सुबह उनके नोकरी पर जाने के बाद उठा करते थे एसे में उनसे मिल पाना ही मुस्किल हुआ करता था... जब कभी जल्दी आते तो यंहा वहा कि बैटन में समय ही बीत जाता था... अगर कंही से कुछ लड़ाई झगडे कि सिकायत पापा के पास आती तो माँ के आचल का सहारा लेकर खड़े हो जाते पिता जी से माँ ही निपटती हमें आगे आने कि जरुरत नहीं पड़ती... एसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि माँ हर कदम पर मेरे साथ थी...
दिन बीतते गए और मैं धीरे धीरे बड़ा होता गया... एनसीसी में था तो कई बार बाहर जाना पड़ता था तो माँ पिताजी,दादी और छोटी बहिन घर पर ही रहते पर माँ से एसा एक भी दिन नहीं गुजरता जब उससे फ़ोन पर बात नहीं करता हूँ... उससे दो तीन मिनिट ही बात हो जाती तो मानो फिर से एक उमंग सी जग जाती जैसे किसी ने फिर से उर्जा शारीर में भर दी हो... आज में इ टीवी में जॉब करता हूँ... अपने घर से बहुत दूर...मेरा घर जबलपुर के पास बरेला मंडला रोड पर पड़ता है... ३ महीने पहले छोटी बहिन कि शादी हो गई अब तो माँ एक दम अकेले हो गई है... पिता जी नोकरी पर चले जाते है और दादी छोटे चाचा लोगे के यंहा पर... मेरी माँ घर पर अकेली पड़ जाती है... मैं उससे तीन महीने हो गये नहीं मिला हूँ... पर फ़ोन के जरिये उससे मुलाकात हो जाती है... वो रोज पूछती है कि खाना खाया दोपहर में टिफिन खाया कि नहीं... घर कब निकलेगा... जरा सोचो उसे अपने कलेजे के टुकड़े का कितना खियाल है... एसी होती है माँ... दुनिया में माँ कि तुलना करना तो छोडिये उस बारे में सोचना भी गलत है... आज माँ के चेहरे पर ख़ुशी है क्योंकि उसका बेटा कमाने खाने लगा है... पर उससे चिंता भी हर पल कि मेरे सोने से लेकर खाने कि मेरे कपडे से लेकर मेरे रहने कि... पर यंहा पर ये जरुर कहना जरुरी है कि पिता जी भी माँ के सामान मेरी जिन्दगी है... क्योंकि इन दोनों के आशीर्बाद से ही में आज यहाँ पर हूँ... मुझे वो दिन आज भी याद है कि जब तक में घर पर था तो कभी मुझे अपने कपडे धोने नहीं दिया... मुझे खाई थाली उठाने नहीं दी... यंहा ता कि जब में कभी चादर ओड़े सो जाता था और बाजु में टेप बजा करता था तो वो कभी नहीं कहती थी कि टेप क्यों चल रहा है... लाइट क्यों जल रही है... उसने मुझे कभी लिखने और पड़ने के लिए कभी नहीं चिल्लाया... और वो सदा मेरा फेवर करती है... पर आज मैं उससे दूर हूँ तो हर पर उसकी याद आती है... कभी कभी वो पापा से मेरे कारण लड़ाई भी कर लिया करती थी... दुनिया कितनी भी बदल जाये पर माँ का रूप नहीं बदल सकता यहाँ तक कि माँ माँ ही रहेगी कुमाता नहीं होगी... बेटा भले ही कपूत हो जाये...
,,, आज माँ का दिन है दुनिया कि हर माँ को मेरा प्रणाम,,,
...तेरा आशिर्बाद सदा हम पर बना रहे...