Tuesday, May 18, 2010

खोफ नाक मंजर...

मैं क्या कहूँ जब भी याद आता है वो मंजर तो सिर सर्म से छुक जाता है और हर बार दिल यही सवाल करता है कि क्या इंसान के अंदर का इंसान मर चूका है क्या इंसानियत का सुपूर्त--खाक हो चुकी है क्योंकि अगर आप भी उस दिन कि घटना के बारे में सुनेगे तो आपको भी येही सवाल उठायेंगे... बात आज से ठीक एक सप्ताह पहले कि है... यानि कि १२ मई कि वक्त था शाम के पांच बजे का... और जगह राजधानी का बैरन बाज़ार इलाका... एक सख्स जिसका नाम नागराज था जो पेशे से धोबी था... उसने खुद पर केरोसिन का तेल डालकर आग लगा ली॥ घर के अन्दर जब उसने आग लगाई तो वो ५० फीसदी तो अंदर ही जल चूका था और उसके बाद वो दोड़ता हुआ बाहर निकला जिसने भी उस मंजर को देखा तो उसकी आंखे फटी कि फटी रह गई... अगर आप कि उस बक्त बांह पर होते तो आपकी भी रूह कांप उठती ... पर सब लोग तमाशबीन बनकर तमाशा देखने में लगे हुए थे पर किसी ने उस जलते हुए इन्सान को बचाने कि कोशिश भी नहीं कि... पर भला हो उस उन्जान व्यक्ति का जिसने पुलिस को फ़ोन कर दिया कोतवाली थाने का स्टाफ बन्हा पर पंहुच पर जनाव वे भी कुछ नहीं कर सके क्योंकि उन्हें उस जलते हुए नागराज के जलने कि बू आ रही थी कोई मुह पर रुमाल बांध रहा था तो कोई पुलिसवाला दूर भाग रहा था पर वाह रे हम इंसान कोई उसे बचाने कि लिए आगे नहीं आया... पर जब इसकी जानकारी मीडिया को लगी और वो बन्हा पर पहुची तो वो मंजर और इन्सान कि इंसानियत का कला चेहरा कैमरे में कद हो गया... मीडिया ने पुलिस को समझाया और जब वो नहीं समझे तो फिर मुझे जैसे खुद आगे आना पड़ा... क्योंकि अगर में आगे नहीं आता तो सायद बहुत देर हो गई होती... पर आपको बता दे कि देर तो हो चुकी थी.... क्योंकि नागराज बन्हा पर पड़े हुए तड़फ रहा था... उस भयानक मंजर को आप इस तस्वीर में देख सकते है... पर बाह रे पुलिस और उससे भी ज्यादा सर्म हम इन्सान को करना चाहिए जो खुद को पड़ा लिखा और समझदार बताते है...
आपको बताऊँ कि उस घटना कि जानकारी लगते ही मैंने सिटी एसपी सहित सीएसपी को फ़ोन लगाया पर सब के सब सीएम के प्रोग्रामे में लगे हए थे... जनता जो तड़फ रही है उससे ज्यादा मंत्रियों कि ड्यूटी बजाने में इन्हें अपना सही फर्ज नजर आता है... पर उसके बाद हमने उसे अम्बुलेंस में डाल कर आंबेडकर पहुचाया पर बन्हा पर वो मर चूका था... आपको बता दे कि जब कोतवाली थाने को इसकी जानकारी दी गई थी कि एक व्यक्ति ने आग लगा ली है तो थाने से निकलने से पहले अन्बुलांस को खबर कर देनी चाहिए... ताकि बक्त रहते वो बन्हा पर पहुच जाये... पर जनाब एएसई साहब ने मोके पर पंहुचकर अमबुलंस को फ़ोन किया... आप पुलिसवालों कि कार्यप्रणाली के बारे में समझ सकते है... वो भी राजधानी पुलिस जिस हर पर मुस्तेद रहना चाहिए॥ पर इनका क्या है ए तो सोते रहते है... शहर में लूट, चोरी,डकैती जैसी वारदाते आम हो गई है... हत्याए तो मानो छोटी छोटी बातो पर कर दी जा रही है... अपराधियों पर पुलिस का कोई भय नहीं रह गया है... अच्छा हुआ कि मीडिया बन्हा पर वक्त रहते पहुँच गई वर्ना पुलिस का चेहरे और बन्हा पर खड़े इंसान रूपी बुजदिल लोगो कि सक्ले कैसे सामने आती...
यंहा पर इतना कहना जरुरी है कि आज हमें आपने को सुधारना होगा क्योंकि आज नागराज के परिवार पर ए कहर टुटा है खुदा न करे कल को तुम्हारे साथ एसा कुछ घटे तो क्या होगा इसका अभी से एहसास करना जरुरी है... आपको बताऊ कि उस जगह पर करीब २०० से ज्यादा लोग थे पर किसी ने एक कदम भी आगे नहीं बढाया कि उस जलते हुए नागराज को हॉस्पिटल तक पहुचाया जा सके... देश में ए पहेली घटना नहीं है... इससे पहले भी इससे कंही भयानक तस्वीरे सामने आ चुकी है पर समझ नहीं आता कि क्यों जनता मूक दर्शक बड़े सिर्फ तमाशा देखती रहते है... क्यों वो अपनी नेतिक जिम्मेदारी नहीं समझती... कब तक पुलिस मोके पर पहुचेगी और कब सख्स को अस्पताल पहुचाया जायेगा... अगर नागराज को बक्त रहते अस्पताल पहुच्या जाता तो सायद वो बच जाता... पर इस धरती पर किसे किसकी फिक्र है... सब अपनी मस्ती में मस्त है... पर क्या येही इन्सनियता है इससे अच्छे तो जानवर है जो अपने साथी कि जान बचाने के लिए मौत को भी गले लगा लेते है... जरा हमें उनसे कुछ सिखने कि जरुरत है... जल्द सिख जाये तो बेहतर रहेगा...