Monday, May 17, 2010

नक्सालियों का एक और वार...

नक्सालियों ने एक बार फिर ब्लास्ट कर पुरे देश को झाग्झोर दिया... सुकमा दंतेवाडा मार्ग पर हुए इस हमले से जन्हा राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक के पैरो तले जमीं खिशक गई तो दूसरी तरफ अब आम जनता कि सुरक्षा पर हुआ ये नक्सल हमला इस बात कि चेतावनी दे गया कि अब जनता भी उनके निशाने पर हैआज शाम करीब बजे खबर आई कि नक्सालियों ने एक बस को उड़ा दिया है... जिसमे ६० लोग सवार थे जिसमे एसपी भी बैठे हुए थे... नक्सालियों का मैं टार्गेट वे ही थे क्योंकि नाक्साली उनके दुश्मन यानि कि पुलिस बालों का साथ देने वालों को कभी छोड़ते नहीं..... पर नाक्सालिओं ने आज जो किया अगर इस हमले के बाद भी दोनों सरकारों कि नीद नहीं टूटी तो ये मान लीजिये कि देश का और उन निर्दोषों का इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या होगा...
घटना के तुरंत बाद निंदा से उत्प्रोत वयान आने शुरू हो गए... किसी ने से नक्सालियों कि कायराना हरकत करार दिया तो कोई इसे नक्सालियों कि बोखलाहट बताने में लगा हुआ था... प्रदेश के गृहमंत्री ने यंहा तक कह दिया कि अब उनका अंतिम समय आ गया है...... हलाकि ननकी राम कवर इस तरह कि बाते हर वार करते है... पर ये भूल जाते है कि न तो वे न उनकी सेना नक्सालियों का कुछ भी नहीं बिगाड़ पी है॥ आपको बता दे कि पिछले ४५ दिनों के अन्दर ये नक्सालियों के द्वारा किया गया तीसरा सबसे बड़ा हमला है... वो भी राजमार्ग जैसी सड़क पर... आज इस घटना के बाद प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने कहा है कि उसी रास्ते से एसपी गुजरे थे और दो पुलिस के वाहन और इस वाहन में सवार थे एसपीओ जिन्हें मारने के लिए ये पूरा चक्र्वुय रचा गया था... आपको बता दे कि डॉक्टर सिंह ने ३५ लोगो के मारे जाने कि पुष्टि कर दी है... पर ये संखिया और बढ सकती है...
आखिरकार ये हमले होते कैसे है... आपको बता दे कि नाक्साली कई कई दिनों तक पुरे इलाके का मुआयेना करते है... और ये कोशिश करते है कि लैंड मांइड एसी जगह फिट किया जाये जो ज्यादा नुकसान कर सके... सड़क पर लैंड मैंड लंगाने के लिए सड़क को खोदना उसमे लैंड मैन्स लगाना और उसके तार को कई मीटर दूर ले जाना और उस घडी का इन्तेजार करना जब जवानो का वाहन उस रास्ते से गुजरे... और फिर दोनों तारो को मिला देना एसे होता है ब्लास्ट... पर आज स्थिति बहुत ही भयाबक हो चुकी है... इसके लिए सेना उतरनी ही होगी बरना वो दिन दूर नहीं जब पुरे राज्य पर नक्सालियों का राज्य स्थापित हो जायेगा... और जो वे चाहते है... पर अभी भी राज्य सरकार गंभीर नहीं है... पर इतना जरुर है कि आज कि घटना के बाद ननकी राम कवर और डॉक्टर रमन सिंह के माथे पर चिंता के बादल दिखाई दे रहे थे... और कल रमन सिंह तो दिल्ली जा रहे है... आला नेताओ से मिलने... हो सकता है कि कुछ हल निकलने के लिए बात आगे बड़े बरना ये तो निंदा और कायराना हरकत के आलावा और कुछ भी नहीं कह सकते...
चलिए देखते है कि दिल्ली में जाकर क्या गुल खिलता है या फिर बनही वयान कि अभी सेना उतरने कि जरुरत नहीं है... मैं एसे कहूँ कि अभी सेना उतंरने कि जरुरत नहीं है कुछ और ज्यादा लोगो को एक साथ मरने दो...

2 comments:

  1. बस्तर के जंगलों में नक्सलियों द्वारा निर्दोष पुलिस के जवानों के नरसंहार पर कवि की संवेदना व पीड़ा उभरकर सामने आई है |

    बस्तर की कोयल रोई क्यों ?
    अपने कोयल होने पर, अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर

    सनसनाते पेड़
    झुरझुराती टहनियां
    सरसराते पत्ते
    घने, कुंआरे जंगल,
    पेड़, वृक्ष, पत्तियां
    टहनियां सब जड़ हैं,
    सब शांत हैं, बेहद शर्मसार है |

    बारूद की गंध से, नक्सली आतंक से
    पेड़ों की आपस में बातचीत बंद है,
    पत्तियां की फुस-फुसाहट भी शायद,
    तड़तड़ाहट से बंदूकों की
    चिड़ियों की चहचहाट
    कौओं की कांव कांव,
    मुर्गों की बांग,
    शेर की पदचाप,
    बंदरों की उछलकूद
    हिरणों की कुलांचे,
    कोयल की कूह-कूह
    मौन-मौन और सब मौन है
    निर्मम, अनजान, अजनबी आहट,
    और अनचाहे सन्नाटे से !

    आदि बालाओ का प्रेम नृत्य,
    महुए से पकती, मस्त जिंदगी
    लांदा पकाती, आदिवासी औरतें,
    पवित्र मासूम प्रेम का घोटुल,
    जंगल का भोलापन
    मुस्कान, चेहरे की हरितिमा,
    कहां है सब

    केवल बारूद की गंध,
    पेड़ पत्ती टहनियाँ
    सब बारूद के,
    बारूद से, बारूद के लिए
    भारी मशीनों की घड़घड़ाहट,
    भारी, वजनी कदमों की चरमराहट।

    फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    बस एक बेहद खामोश धमाका,
    पेड़ों पर फलो की तरह
    लटके मानव मांस के लोथड़े
    पत्तियों की जगह पुलिस की वर्दियाँ
    टहनियों पर चमकते तमगे और मेडल
    सस्ती जिंदगी, अनजानों पर न्यौछावर
    मानवीय संवेदनाएं, बारूदी घुएं पर
    वर्दी, टोपी, राईफल सब पेड़ों पर फंसी
    ड्राईंग रूम में लगे शौर्य चिन्हों की तरह
    निःसंग, निःशब्द बेहद संजीदा
    दर्द से लिपटी मौत,
    ना दोस्त ना दुश्मन
    बस देश-सेवा की लगन।

    विदा प्यारे बस्तर के खामोश जंगल, अलिवदा
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई,
    अपने अजीज मासूमों की शहादत पर,
    बस्तर के जंगल के शर्मसार होने पर
    अपने कोयल होने पर,
    अपनी कूह-कूह पर
    बस्तर की कोयल होने पर
    आज फिर बस्तर की कोयल रोई क्यों ?

    अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त साहित्यकार, कवि संजीव ठाकुर की कलम से

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