अब जागो नहीं तो कब जागोगे...
सब मिट जायेगा क्या तब जागोगे...
और कितने को तिरंगे में लिपटा देखना चाहते हो...
बहेंगी खून कि नदिया क्या तब जागोगे...
उसकी बीबी देख रही थी राह... हाथो में थाल लिए...
आँखों में सपने सजाये... अपने दो बच्चो को साथ लिए...
पर खबर आई कि पति वतन पर हो गया शहीद...
पूछ गया माथे का सिंदूर अब न रहा मेरा वहीद....
अरे सफ़ेद पोसों अब तो जागो...
मरवा दोगे हर वाहिद को क्या तब जागोगे...
बहेगी खून कि....
नेता का बेटा अगर मरता तो क्या ये स्थिति होती...
सायद आज सारी फोज सीमा पे खड़ी होती...
अरे उस माँ का दर्द कौन समझता है...
जिसकी गोद में उसके जवान बेटा का शब् रखा है...
बस मरने के नाम पर बाँट दिया पैसा कर दिया सलाम ...
पंहुचेगा नक्सल राजधानी क्या तब जागोगे...
बहेगी खून कि...
बहन कि राखी सुनी कर दी...
अब बो कुछ नहीं बोल रही है...
मानो जैसे काठ कि पुतली बनकर सुख गई है...
एक लोता भाई था उसका... कहा था तुझे डोली में बठाऊंगा...
पर अब उसकी लाश उसके सामने पड़ी है...
और कितनी बहनों को भाई से जुदा करोगे... क्या इसके बाद जागोगे...
बहेगी खून कि...
अरे बहुत हुई तुम्हारी राजनीती... अब भी बक्त है संभल जाओ...
उतारो सेना और नक्सल बाद मिटाओ ...
कंही देर न हो जाए... कदम उठाने में...
कब्ज़ा होगा उनका हमारे ठिकाने में....
राजनीती छोडो मोर्चा संभालो... क्या भारत माँ पर खून के छीटे पड़ेंगे क्या तब जागोगे...
बहेंगी खून कि नदिया क्या तब जागोगे...
bahut sundar rachna hai,
ReplyDeleteहिन्दीकुंज
बहेंगी खून कि नदिया क्या तब जागोगे...
ReplyDelete...बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय रचना,बहुत बहुत बधाई!!!
माफ करना भाई बहुत ही देर से पहुंचा हूँ आपके ब्लॉग पर वसे बहुत सुंदर रचना है आपकी धन्यवाद शहीदों को याद दिलाने पर
ReplyDeleteआप भी आमंत्रित हैं इस ब्लॉग पर
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