मुझको जैसे आदात सी पड़ गई तेरी...
सुबह उठाता हूँ तो देखता हूँ सूरत तेरी...
तेरा हँसता हुआ चेहरा मेरे दिन भर कि ताजगी है...
मेरी आखों में बसी है मूरत तेरी...
मैं जब भी सोचता हूँ तेरे बारे में...
पलटता हूँ वो किताब जिसमे तस्वीर तेरी...
मेरे अपने तेरा मेरा रिश्ता पूछते है कभी...
मैं भी कह देता हूँ मैं जिस्म हूँ वो जान मेरी...
बस कहानी यंही पर आकर थम गई है...
न हुआ में तेरा न हुई तू मेरी...
मुझको जैसे आदात सी पड़ गई तेरी...
सुबह उठाता हूँ तो देखता हूँ सूरत तेरी...
तेरा हँसता हुआ चेहरा मेरे दिन भर कि ताजगी है...
मेरी आखों में बसी है मूरत तेरी...
मैं जब भी सोचता हूँ तेरे बारे में...
पलटता हूँ वो किताब जिसमे तस्वीर तेरी...
मेरे अपने तेरा मेरा रिश्ता पूछते है कभी...
मैं भी कह देता हूँ मैं जिस्म हूँ वो जान मेरी...
बस कहानी यंही पर आकर थम गई है...
न हुआ में तेरा न हुई तू मेरी...
मुझको जैसे आदात सी पड़ गई तेरी...
सुबह उठाता हूँ तो देखता हूँ सूरत तेरी..
...बेहतरीन !!!
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