Tuesday, November 24, 2009

ख़बर दिखाना हमारा काम... ना कि डर पैदा करना...

समाचार पत्र समाज का दर्पण होता है.........और समाज के अन्दर होने वाली हर छोटी बड़ी घटना दुर्घटना को अपनी लेखनी के माद्यम से एक पत्रकार जनता तक पहुचता है... आजादी के समय अखबार अंग्रेजों पर कहर बनकर टूटता था और उसे अंग्रेज बंद करवा दिया करते थे... और आजादी मिलने के बाद अखबार का मकसद जनता कि समस्या को सरकार तक पहुचना और सरकार कि बात जनता तक...... सायद कुछ समय तक ये चलता भी रहा... .समाचार शेतु कि तरह काम करता रहा पर अचानक क्या हुआ सब कुछ बदल गया..मानो एक साफ़ बनती तस्वीर पर किसीं ने कालिक दी हो... खेर ये तो बात थी समाचार पत्र कि जिसे लोग विचार पत्र माना करते थे पर आज स्थिति ये है कि इसे बही लोग इसे व्यापार पत्र कहने लगे है...
टीवी चैनेलों का हाल इसे तनिक भी जुदा नहीं है... या यूँ तुलना करे तो बेटा नम्बरी और बाप दस नम्बरी लगता है...
आप सोचते होंगे कि आप खुद एक टीवी चैनेल से जुड़े हुए है फिर आप एसा क्यों कह रहे है पर दोस्त जो सच है उससे मुह नहीं मोड़ना चाहिए बल्कि स्वीकार करने में ही बुधिमत्ता है... ..आप मानो या न मानो पर आज हम जो परोश रहे है वो हिंदुस्तान को गर्त में ले जा रहा है.... आज टीवी चैनेलों में ये होड़ लगी है कि कौन कितना कल्पना के बाज़ार में जनता को गोते लगा सकता है या उसे अपने शो में बंधे रख सकता है... ..उसके लिए ब्रेक पर जाने से पहले इतना कुछ दर्शकों के andar मैं भर दिया जाता है कि वो एक पल के लिए भी टीवी सेट नहीं छोड़ सकता यानि कि ब्लेक मेलिंग..... जी है और इस अनोkhi और बेतुकी परम्परा कि नीव डाली है इंडिया टीवी ने मुझे काहते हुए जरा भी झिजक नहीं होता कि अगर इस तरह कि खबरे सॉरी खबर नहीं अफवाह या रूमर कि शुरुआत नही होती तो सायद आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया कि छवि पर दाग नहीं लगता... पर जिस तेजी से इस चेनेल कि टीआरपी बड़ी है उसने कई चेनलों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या उन्हें भी एसा कुछ करना चाहिए... और किया भी सभी अपने मूल मकसद से पीछे हटकर चल पड़े इंडिया टीवी के पिछलग्गू बनकर... पर ये सच है कि लोग एसे ही प्रोग्राम देखना पसंद करते है पर मेरे पास इसका भी जबाब है वो ये कि हमने यानि कि न्यूज़ चेनेल ने है लोगों कि आदते बिगड़ी है... बरना ये दिन हमें आज नहीं देखना पड़ता... ....सब इस पर बात करते है कि क्या मीडिया परेश रहा है... सच है कि लोग मुझेसे पूछते है क्या आप इसी जमात में काम करते है... ना चाहते हुए भी कहना पड़ता है haa..mujhe इतना...बुरा लगता है कि लोग क्या सोच रहे है... हम भले ही अपने को ये साबित करे कि हम टीआरपी में सबसे आंगे है पर सच तो बही है जो आप जनता के बीच जाकर सुनते है...
आपको तो बता ही है कि सिर्फ एक चेनेल एसा नहीं है... बल्कि ७५ प्रतिसत टीवी चेनेल इसी कतेगिरी के है॥ मेरे ख्याल से ना सिर्फ सरकार को बल्कि उससे पहले खुद समाचार पत्र और टीवी चेनेल के लोगों को बैठ कर कुछ ठोस हाल खोजनाचाहिए बरना बो दिन दूर नहीं जब कुछ चैनेलों कि बजह से तमाम टीवी चैनेलों को सिर्फ और सिर्फ जनता फर्जी नाम से न संबोधित करने लगे...
मुझे तो ये समझ नहीं आता कि एक अरब २० करोड़ जनता... २८ राज्य... और नक्सल बाद,,,, आतंकबाद के बीच इन खबरिया चैनेलों को खबर के लाले पड़े रहते है जो उन्हें भुत प्रेत... २०१२ में विनाश.. आग का दरिया..और पता नहीं क्या क्या चीजों का सहारा लेना पड़ता है... .....मुझे लगता है कि सूरज और चाँद का ग्रहण तो कुछ समाये का होता है पर इन चैनेलों पर लगा ग्रहण कब उतरेगा पता नहीं... मुझे तो ये भी लगता है कि जनता कि ख़ामोशी कुछ अलग ही इशारे कर रही है हमे समझना होगा... पर लगता है कि समझे समझे देर न हो जाये... और फिर बही कहावत याद आएगी कि...
aअब पश्चात हॉट का जब चिड़िया चुग गई खेत...

Monday, November 23, 2009

सचिन 'रिकॉर्ड' तेंदुलकर

हिंदुस्तान में भले ही क्रिकेट का जनम ना हुआ है बाबजूद इसके इस देश के लोगों का दिल क्रिकेट पर ही धडकता है ..सुबह का अखबार हो या टीवी का रेमोड सब अपने आप क्रिकेट को तलाश लेते है..क्योंकि इस देश की आवाम क्रिकेट जीती है और क्रिकेट पर मर मरती है... और आप सोच रहे है की ये याराना बेहद ही पुराना है तो जनाब एसा नही है... अभी कुछ दशकों से ही क्रिकेट के चाहने बालों की तादाद बड़ी है... ना जाने कितने खिलाड़ी आए और जाते रहे पर कुछ खिलाड़ी है जिन्होंने अपना सब कुछ क्रिकेट को समर्पित कर दिया..और आज लोग उसे मास्टर ब्लास्टर के नाम से जानते है॥

एक तेज गेंदवाज बनने का सपना पाले हाथों में गेंद थामे नाटे कद का नोजवान जब मैदान में उतरा तो लोगों ने कहा की ये गेंदवाज नही बल्कि बल्लेवाज ज्यादा लगता है.... और उसी में से किसी ने उस नोजवान के हाथों में थमा दिया बल्लासुक्र है उस इन्सान का जिसने उसे बल्ला पकडाया... ...क्योंकि अगर उसकी प्रतिभा को पहचाना न जाता तो सायद क्रिकेट इस महान खिलाड़ी से महरूम रह जाता..जी हां बहुत हुआ आप सब समझ ही गए होंगे की मैं किसकी बात कर रहा हूँ..... बेसक सचिन रमेश तेंदुलकर की... जिसके लिए क्रिकेट से बढकर सायद आज भी दुनिया में कुछ और नही है..... मुझे वो दिन आज भी याद है... हलाकि मैं बहुत छोटा था... पर सचिन के पिता के मौत की ख़बर लगी उस बक्त विश्व कप चल रहा था... इस खिलाड़ी ने न क्रिकेट को छोड़ा न अपने पुत्र धर्म को..... पिता की अन्तिम यात्रा में सामिल हो कर लोट गया मैच खेलने और ठोक दिया शतक... और बता दिया की देश से बढकर दूसरा कोई नही...

पर इस महान खिलाड़ी पर ऊँगली उठाने वाले ये भूल गए है की हिंदुस्तान का कोई भी सच्चा देश भक्त है तो वो उससे जब पूछा जाएगा की वो कौन है तो वो बही कहेगा की वो हिंदुस्तान है... और सचिन ने एसा है कहा पर लोग तो सिर्फ़ अपना उल्लू सीधा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते है और शिवसेना के नेता ने एषा है लिखा है॥ की सचिन ने मराठियों की भावनायों के साथ खिलवाड़ किया है.अगर ख़ुद को हिन्दुस्तानी वोलना ग़लत है तो ठीक है आज हर हिन्दुस्तनी ये बोलेगा... ..खेर छोडिये हिन्दी में एक कहावत है की कुत्ता कोसने से ढोर नही मरता वो इन पर ठीक जमती है...हम तो उस महान खिलाड़ी की बात कर रहे थे पर पता नही कहा से कुछ बटवारा करने बालों का जिक्र आ गया...सचिन तेंदुलकर को अगर सचिन 'रिकॉर्ड' तेंदुलकर कहा जाए तो ग़लत नही होगा.वन डे हो या टेस्ट सायद ही एसा कोई रिकॉर्ड होगा ये इस खिलाड़ी के नाम नही होगा.आज भी जब भी इस महान खिलाड़ी से बात करो तो इसे अपने करियर में इतना दुःख है की वो भारत को विश्व कप विजेता नही बना सका है......और उसे हमेश इस बात का मलाल रह जाता है॥जिसने अपनी तमाम उम्र क्रिकेट पर समर्पित कर दी..अगर उस पर कोई ऊँगली उठता है तो बड़े सरम की बात है... न सिर्फ़ सरम की बात है मुंबई बासियों के लिए बल्कि पुरे देश के लिए.. क्योंकि सचिन देश ने देश को बहुत कुछ लिया है.. पर राजनितिक रोटिया सकने वाले क्या हम तो येही कहेंगे की सचिन पर उतने वाली हर आवाज का जबाब उस खिलाड़ी को नही देना है बल्कि देश की सरकार और जनता को चाहिए की इसका जबाब दे...

Sunday, November 22, 2009

आई बी एन पर हमला हिंदुस्तान पर हमला

पत्रिकारिता जिसे लोकतंत्र का चोथा स्तम्भ मन जाता hai अगर उस पर हमला होता है तो ये हमला लोकतंत्र पर है और इसकी जितनी निदा की जाए वो ना काफी है... आई बी एन ७ लोकमत के मुंबई स्तिथ दफ्तर पर हुआ हमला ये सावित करता है की देश का कानून आज भी उन लोगो की जागीर बना हुआ है... जो इसे बर्षों से खेलते आ रहे है... अगर मुंबई पुलिस ये समझती है की ७ लोगो की गिरफ्तारी करके उसने अपना काम पुरा कर दिया है तो यह उसकी भूल हँ क्योंकि उन सात गुडों को पकड़ने से कुछ नही होने वाला क्योंकि इस वारदात को करवाने वाला अभी भी चैन की साँस ले रहा है... और लेता आया है... शिवसेना के गुंडों को अगर पकड लिया है... और यह भी पता है की ये किसके कहने पर किया गया है तो घटना को एक लंबा अरशा बीत जाने के बाद पुलिस क्यों खामोश है... इससे साफ़ है कि गुंडा राज के आंगे खाकी के हाथ ख़ुद हथकड़ी में जकड़े हुए है...

आपको तो पता ही है कि हिंदुस्तान में ये पहला बाक्य नही है कि जब पत्रकार पर हमला हुआ हो या चैनल के दफ्तर पर पर क्यों आजतक कोई एश कानून नही बनता जिससे सच को सामने रखने वालों को रोका जन सके... आजादी के ६० साल गुजर जाने के बाद भी अगर एसा होरहा है तो दुर्भाग्य कि बात है... ये तो अच्छा हुआ कि हमला वारो को मीडिया ने पकड़ लिया बरना हम और आपको येही मालूम होता कि किसी ने हमला किया होगा और पुलिस कि जाँच चल रही है.... पर ये तो सबके सामने है कि शिवसेना सुप्रीमो ने ख़ुद लिखा है कि ये हमला शिवसेना ने करवाया है... आब तक तो आप जिहादियों को हमले कि जिम्मेदारी लेते सुनते थे पर अब आप ख़ुद सामना में सायद पड़ चुके होंगे कि कितनी दिलेरी से शिवसेना हमले कि जबाबदारी ले रही है इससे साफ है कि इन्हे कानून काम डर नही है... क्योंकि इनको पता है कि कानून इनका कुछ नही बिगड़ सकती...

एक अहम् सवाल ये है कि अगर शिवसेना के टट्टू किसी मीडिया दफ्तर पर तोड़फोड़ या पत्रकारों को मार सकते है तो ये भी उतना भी सच है कि वो किसी को मार काट सकते है... बालासाहेब तो राज ठाकरे कि भाषा बोलते नजर आ रहे है... कभी आपनी बेबाकी के लिए जाना जाने वाला सामना अब सिर्फ़ भड़ास बन कर रह गया है... जो रोज किसी न किसी को कोसता रहता है,... मुझे तो लगता है.... कि मुंबई को ठाकरे परिवार काम ने इतना बदनाम कर दिया है कि लोग मुंबई को माया नगरी कि जगह गुंडा नगरी मानने लगे है... एक तरफ तो राजठाकरे और उसके समर्थकों काम सिर्फ़ हिन्दी बोलने बालों को मरना रह गया है... तो अब बालठाकरे भी इसी रह पर चल पड़े है क्योंकि उन्हें भी समझ में आ ही गया है है कि राज ठाकरे कि रह में चल कर ही सफलता है इसलिए चाचा भातिये दोनों कुंद पड़े है अंधे कुए में जन्हा इन्हे नफरत के आलावा कुछ नही दिख रहा... सिवाजी के नाम पर राजनीती करने वाले ये अपने आप को मराठी मानते है तो इन्हे एकबार ख़ुद को पवित्र करना होगा क्योंकि ये मराठी कहने के काविल ही नही... छत्रपति सिवाजी जिन्होंने देश को एक जुट करने में आपनी क़ुरबानी दे दी ... ये भूल गए कि उनकी आत्मा ऊपर से कितनी रो रही हो रही होगी...

हम तो सिर्फ़ इतना कहना चाहते कि मुंबई को अगर बचाना है तो कानून को गुंडों पर लगाम कसनी होगी.... और उन गुंडों पर जो गुंडों के सरताज बने बैठे है... आप समझ ही गए होंगे कि हम किनकी बात कर रहे है... रही बात मीडिया कि तो उसकी चिंता करने कि जरूरत किसी को नही है क्योंकि जो किसी को आसमान पर पहुचती है तो उसे जमींन दिखने में जायदा बक्त नही लगता..कलम को हमेशा रोका गया है.... आजादी के बाद भी आजादी के पहले भी पर इसे जितने बार भी रोकने कि कोशिश कि गई है उसने उतनी ही धार से सच के साथ वार किया है... और उम्मीद है कि करती रहेगी...

Friday, October 16, 2009

इमानदारी की सजा

रायपुर का एक सिटी एसपी अपने पद से इस्तीफा देता है... सवाल आख़िर क्यों... इन दिनों पूरे राज्य में सिर्फ़ इसी कि चर्चा है..... पुलिस आधिकारी से लेकर मुखमंत्री रिक्शेवाले से लेकर दूकानदार तक दिवाली के मोके पर फटाको के बाजार के साथ साथ शशिमोहन के इस्तीफे कि चर्चा हो रही है...यूँ तो कई पुलिस वाले इस्तीफा देते है..आधिकारी इस्तीफा देते है पर उनकी ख़बर सिर्फ़ अखबारों के पन्ने के किसी कोने में दब कर रह जाती है पर शशिमोहन के इस्तीफे कि ख़बर आप आश्चर्य करेंगे जब एक मीडिया बंदू ने शशिमोहन के घर का पता पूछा तो रिक्शेवाले ने शशिमोहन के घर का पता बाद में बताया पहले यह कहा कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है... शायद आपको मेरी बातों पर पुरा यकीन ना हो पर बात सोला आने सच है.... जी हां पाँच महीनो पहले रायपुर में शशिमोहन कि नियुक्ति कि गई उन्हें कबर्धा से रायपुर लाया क्या क्योंकि यंहा पर अपराध लगातार बढ रहा .राजधानी में अपराध को रोकने के लिए शशिमोहन को लाया क्या... जिस रफतार से शशिमोहन or रजनेश सिंह और आजाद सात्रू बहारूर सिंह ने गुंडों बदमासों पर नकेल कसने शुरी कि उससे रायपुर में अमन चैन लोटने लगा पर यंहा भी राजनीति हावी होने लगी....

शशिमोहन सिंह कि देह्सत और उसका काम जिस रफ़्तार से चला उसने आला पुलिस आधिकारियों को परेशानी में डाल uसका टीवी में दिखना आला आधिकारियों को तो खटका ही साथ ही फिर चाहे मंत्री हो या संत्री उन सबके खिलाफ उसकी मुहीम चली..जुआ साट्टे में कई मंत्रियों के चेले पकड़े गए और उन पर भी बराबर कारवाही हुई... पर १३ तारीख को रायपुर के तेलीबांधा में एक कोल्ड स्टोरेज में छापा मारा गया और जन्हा से कई टन नकली मबा जप्त हुआ... और उसी में था एक मंत्रियों के खासमखास का नाम और उसी नाम को काटने के लिए जब पुलिस आला अधिकारीयों पर दबाब पड़ा तो उन्होंने शशिमोहन को नाम काटने के लिए कहा पर नाम ना काटने कि जिद और फर्ज के प्रति बफादार इस पुलिस आधिकारी कि आला पुलिस आधिकारियों से बहस हो गई और इसी दोरान अधिकारी ने शशिमोहन को कुछ एसा कह दिया जिससे इस इमानदार आधिकारी के सम्मान पर बात आ गई और जेब में रखा इस्तीफा उसने एसपी को दिया और चालते बना.....अगर पुलिस में इमानदारी से नोकरी करने कि ये सजा मिलिगी तो क्या कोई खाक पुलिस कि बर्दी पहिनकर मंत्रियों के तलबे चाटेगा ..... शायद इसलिए अपनी बर्दी का सम्मान करते हुए शशिमोहन ने कुछ और बात आगे बड़े इस्तीफा देना ही बेहतर समजा जब मैंने उससे बात कि तो शशिमोहन का कहना था कि एक पंछी को पिंजरे में कैद करकेउसे अगर सोने के कातोरे में भी खाना क्यों न दिया जाए तब भी वो नही खायेगा क्योंकि उसे खुले आसमान के निचे लगे नीम के पेड पर बने घोसले में खाना आच्चा लगेगा...... पर शशिमोहन इस्तीफा देने के बाद भी कुछ करना चाहते है उनका कहना है कि वो कभी भी जनता से दूर नही होंगे और गुनाह के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे... हलाकि कि उनका इस्तीफा अभी मंजूर नही हुआ है॥ पर उम्मीद है कि बो बपिश जरुर लोट आयेंगे... पर फिलहाल रायपुर में माहोल बिगाड़ने लगा है ...

पर देश कि अंदरूनी सुरक्ष कि जिम्मेदारी उत्नाने वाली पुलिस अगर नेताओ के इसारे पर चलती है तो देश का क्या होगा॥ हालाकि आपको बता दे कि इस ख़बर को लेकर तरह तरह के क्याश लगये जा रहे है... प्रिंट मीडिया तो पता नही क्या क्या छाप रहा है.... पर इतना जरुर है कि इस्तीफे ने पुलिस विभाग कि पोल खोल दी है कि... यह विभाग सिर्फ़ जिन्दा है तो शशिमोहन जैसे अफसरों के बरना कब का बिक गया होता.... अगर लोग कहते हा कि पुलिस बिकाऊ है तो कुछ गलत नही कहते॥

राज्ये में नक्सली आपना कहर बरपा रहे है... और एसे में नेता के दबाब में कोई पुलिस वाला अपने निचे के अधिकारी को कुछ कहता हैवो भी इतना कि उसे इस्तीफा देन पड़ जाए तो इससे ज्यादा इस विभाग के लिए सरम कि बात और क्या हो सकती है... अब देखने वाली बात तो यह है कि मामला गर्माता देख आला अफसर क्या बोलते है .... पर मैं तो इतना ही कहूगा कि पुलिस में भरती होने से अच्छा है मट्टी खोद के पैसा कम लो पर खाकी पहनकर सफेद्पोसों के पैर मत चाटो...